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________________ प्रथमो विलासः जोते हैं, चञ्चल भौंहों के विकारादि विलास से नेत्र विषयासक्त हो जाते हैं, मैरेय (एक प्रकार की सुरा) के आस्वादन (पान) में संलग्न (अविरत) रहने से वाणी मद (नशे) के कारण लड़खड़ायी हुई होती है- ऐसी प्रेष्याभिसारिका (नायिकाएँ) चेटियों के साथ गर्वित होकर प्रियतम के पास जाती हैं तथा कङ्गनों की ध्वनि करके अथवा पंखा झलकर प्रिय को विबोधित करती हैं और नाक टेढ़ी करके निर्भत्सना करती है।।१४५उ.-१४८पू.।। यथा स्रस्तस्रक्कबरीभरं सुललितभ्रूवल्लिहालामदैरव्यक्ताक्षरजल्पितं प्रतिपदं विक्षिप्तबाहालतम् । सङ्केतालयमेत्य कङ्कणरवैरुद्बोध्य सुप्तं प्रियं प्रेष्या प्रेमवशात् तनोति निटिलभूवल्लिसन्तर्जनम् ।।68 ।। जैसे नायिका के जूड़े में लगी माला ढीली हो गयी है, भौहों के बालों की रेखाएँ मनोहर हैं, सुरा के मद के कारण ध्वनि अव्यक्त (अस्पष्ट) अक्षरों वाली हो गयी है, हमेशा बाहु रूपी लताएँ इधर-उधर फेकी (हिलायी) जा रही हैं। इस प्रकार (समागम के लिए) सङ्केतित स्थान पर आकर और सोये हुए प्रियतम को कङ्कनों की ध्वनि से जगाकर प्रेष्या (अभिसारिका नायिका) प्रेम के वशीभूत होने से मस्तक की ओर भौहों के बालों की रेखाओं को तान कर धमका रही है।।68।। अथ विप्रलब्धा कृत्वा सङ्केतमप्राप्ते दयिते व्यथिता तु या ।।१४८।। विप्रलब्धेति सा प्रोक्ता बुधैरस्यास्तु विक्रियाः । निर्वेदचिन्ताखेदाश्रुमूर्छानिःश्वसितादयः ।।१४९।। यथा ममैव चन्द्रबिम्बमुदयाद्रिमागतं पश्य तेन सखि! वञ्चिता वयम् । अत्र किं निजगृहं नयस्व मां। तत्र वा किमिति विव्यथे वधूः ।।69 ।। (७) विप्रलब्धा- सङ्केत देकर (सङ्केत स्थल पर) प्रियतम के न प्राप्त होने पर जो विक्षुब्ध हो जाती है, वह विप्रलब्धा नायिका कहलाती है। आचार्यों द्वारा घृणा, चिन्ना, खेद, अश्रुपात, मूर्छा, नि:श्वास इत्यादि इसकी विक्रियाएँ कही गयी हैं।।१४८उ.-१४९।। जैसे शिङ्गभूपाल का ही- - - रसा हे सखी! चन्द्रबिम्ब उदयाचल को आ गया और (सङ्केत करके इस स्थान पर न आने
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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