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१५४] :: :: :: :: श्री संथारापरिज्ञा पयन्ना आयरिअ उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य । जे मे केइ कसाया सब्वे तिविहेण खामेमि ॥ १०४॥
सव्वस्स समणसंघस्स भयवओ अंजलि करिअ सीसे सव्वं खमावइत्ता अहमवि खामेमि सव्वस्स ॥ १०५ ॥
सव्वस्सजीवरासिस्स भावओ धम्मनिहिअनि अचित्तो सव्वं खमावइत्ता अहयंपि खमामि सव्वेसिं ॥ १०६ ॥
इअ खामिआइआरो अणुत्तरं तवसमाहिमारूढो । पफोडतो विहरह बहुविवाहाकरं कम्मं ॥ १०७॥
जं बद्धमसंखिजाहिं असुभभवसयसहस्सकोडीहिं । एगसमएण विहुणइ संथारं आरुहंतो य ॥ १०८॥
इह तह विहारिणो से विग्धकरी बेअणा समुट्ठेह | तीसे विझवणा अणुसट्ठि दिंति निज्जवया ॥ १०९ ॥