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चतुर्थे कृत्प्रत्ययाध्याये षष्ठः क्त्वादिपादः
[समीक्षा]
'गोष्पदपूरं वृष्टो देव, गोष्पदप्रं वृष्टो देवः' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ कातन्त्रकार 'णम् प्रत्यय तथा पाणिनि ' णमुल्' प्रत्यय करते हैं। पाणिनि का सूत्र है - " वर्षप्रमाण ऊलोपश्चास्यान्यतरस्याम्' (अ० ३।४।३२)। 'उ-ल' अनुबन्धों के अतिरिक्त उभयत्र समानता ही हैं।
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[विशेष वचन ]
१. सूत्रे एकारस्याय् न क्रियते मन्दधियां सुखार्थम् (दु० टी०)। २. निःसन्देहार्थं वत्सरप्रमाण इति विदध्यात् (क० त० ) ।
[रूपसिद्धि]
१. गोष्पदपूरं वृष्टो देवः । गोष्पद + पूरि + णम्+ सि। 'गोष्पद' शब्द के उपपद में रहने पर 'पूरि' धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा 'णम् 'प्रत्यय, 'ण्' अनुबन्ध का प्रयोगाभाव तथा विभक्तिकार्य ।
२. गोष्पदप्रं वृष्टो देवः । उक्त प्रक्रिया में ऊकार का लोप होने पर यह पाक्षिक (वैकल्पिक) रूप साधु माना जाता है ।। १२९९ ।
१३००. चेलार्थे क्नोपे: [४ । ६ । १५ ]
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[सूत्रार्थ]
वस्त्रार्थक शब्द के उपपद में रहने पर 'नोपि' धातु से वर्षप्रमाण अर्थ के गम्यमान होने पर 'णम्' प्रत्यय होता है ।। १३०० ।
[दु०वृ० ]
चेलार्थे कर्मण्युपपदे क्रोपयतेर्णम् भवति वर्षप्रमाणे गम्यमाने । चेलनोपं वृष्टो देवः, वस्त्रक्नोपं वृष्टो देवः, वसननोपं वृष्टो देवः ।। १३००।
[वि०प०] चेलार्थे ० । न हि क्नोपिरूपो धातुरस्ति नूयी शब्द इत्यस्य इन्प्रत्यये "अर्त्तिह्री०" (३।६।२२ ) इत्यादिना पकारागमे यलोपे गुणे च निर्देशः ।। १३००। [क०त०]
चेलार्थे०। ‘चेलं वसनमंशुकम्' इत्यमरः । चेलक्नोपमिति । यद्यपि 'क्नूयी शब्दे' (१।४११) अकर्मकस्तथापीनन्तत्वात् सकर्मत्वं चेलं शब्दीकृत्य वृष्टः इत्यर्थः ।। १३०० ।
[समीक्षा]
‘चेलनोपम्, वस्त्रक्नोपम्, वसनक्नोपम्' शब्दरूपों के सिद्ध्यर्थ कातन्त्रकार ने 'णम्' प्रत्यय तथा पाणिनि ने 'णमुल्' प्रत्यय किया है- “ चेले नोपे: " (अ० ३।४।३३)। यहाँ पाणिनीय 'उ-ल्' अनुबन्धों के अतिरिक्त उभयत्र समानता ही है। पाणिनीय सूत्र - पठित 'चेल' शब्द की व्याख्या 'चेलार्थ:' की जाती है। अतः कातन्त्रीय 'चेलार्थे' शब्द का पाठ स्पष्टार्थावबोधक कहा जा सकता है।