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विषयानुक्रमणिका
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के व्यवहारानुसार अन्य शब्दों का भी साधुत्व - 'शिष्टप्रयोगानुसारेणापरेऽप्येवं वेदितव्याः' । वस्तुतः अनुबन्धों की योजना शाब्दिक आचार्यों द्वारा कार्यविशेष के उद्देश्य से की जाती है - 'परमार्थतोऽनुबन्धाः कार्यार्थं शब्दव्यवहारिभिरुपादीयन्ते' । गुण- वृद्धिसंज्ञाविषयक पूर्वाचार्यों की मान्यता ]
परिशिष्टम् - १ =
कातन्त्रसूत्रपाठः
२४. सन्धिप्रकरण से आख्यातप्रकरणपर्यन्त सूत्रपाठ
४८९-५०३
| सन्धिप्रकरण के ५ पादों में क्रमशः २३ + १८+४+ १६ + १८ = ७९, नामचतुष्टयप्रकरण के ६ पादों में क्रमशः ७७ + ६५ + ६४ + ५२+२९+ ५०=३३७, आख्यातप्रकरण के ८ पादों में क्रमश: ३४+४७+४२ + ९३+४८+१०२ + ३८ + ३५ = ४३९, कुल ८५५ सूत्रों का, जो आचार्य शर्ववर्मा द्वारा प्रणीत हैं पाठ ग्रन्थक्रमानुसार प्रस्तुत किया गया है ] परिशिष्टम् - २ = कातन्त्रपाणिनीयव्याकरणयोस्तुलनात्मकसूत्रसूची
५०४-६४
२५. शर्ववर्मप्रणीत ८५५ सूत्रों की पाणिनीय सूत्रों के साथ तुलनात्मक सूची
| वर्णानुक्रम से कातन्त्रीय प्रत्येक सूत्र की तुलना पाणिनीय सूत्र के साथ की गई है । तदनुसार कातन्त्रीय २७१ सूत्रों में लाघव, २१ सूत्रों में गौरव, ४३९ सूत्रों में साम्य, ४३ सूत्रों में वैशिष्ट्य, २८ सूत्रों में अन्वर्थता, ४३ सूत्रों में उत्कर्ष, ७ सूत्रों में सरलता, ६० पाणिनीय सूत्रों में लाघव, २३२ पाणिनीय सूत्रों में गौरव, ३ पाणिनीय सूत्रों में उत्कर्ष देखा जाता है ]
परिशिष्टम् - ३ = रूपसिद्धि;
५६५-८६
२६. [ आख्यातप्रकरणगत पाद ४-८ के ३१६ सूत्रों की दुर्गवृत्ति में दिए गए ११३० उदाहरणों की वर्णक्रमानुसार पृष्ठाङ्क सहित सूची दी गई है, इन्हें यथास्थान समीक्षा वाले अंश में सिद्ध किया गया है ]
परिशिष्टम् ४ = श्लोक - श्लोकांशसूची
५८७-८९
२७. | आख्यातप्रकरणगत पाद ४-८ के ३१६ सूत्रों की 'दुर्गवृत्ति-दुर्गटीकाविवरणपञ्जिका-कलापचन्द्र' नामक ४ व्याख्याओं में उद्धृत ३७ श्लोक - श्लोकांशवचनों की सूची पृष्ठाङ्कसहित दी गई है । ये श्लोक भट्टिकाव्य- अमरकोश- पाणिनीयशिक्षादुर्गासप्तशती-शिशुपालवध' आदि ग्रन्थों से दिए गए हैं |