________________
विषयानुक्रमणिका १५. अय् -आयि-गुण-घकारादि आदेश
२६२-८३ [ 'शय्यते' इत्यादि में अयादेश, 'शाययति' इत्यादि में 'आयि' आदेश । ‘जपयति' इत्यादि में पकारागम, ‘पालयति' इत्यादि में लकारागम, 'प्रीणयति' इत्यादि में नकारागम, 'घातयति' इत्यादि में तकारादेश, “जिगीषति' इत्यादि में गकारादेश, “चिकीषति' इत्यादि में ककारादेश । 'उच्चारणार्थ-तदन्तविधिनिरासार्थ-प्रतिपत्तिगौरवनिरासार्थ-आगमार्थशङ्कानिरासार्थ -पाठसुखार्थ-स्वरूपग्राहकार्थ' अनेक कार्यों का साधन । आचार्य शर्ववर्मा के मतविशेष का उल्लेख, धातुओं की अनेकार्थकता, शिष्टसंमत प्रयोग की प्रामाणिकता, उपसर्ग से धात्वर्थ की भिन्नता, सूत्ररचना की विचित्रता तथा चेक्रीयितलुगन्त का भाषा में अप्रयोग ]
१६. अकार-आकार-ओकार-सकार-उपधा आदि का लोप २८४-३२४
['अधुक्षाताम् ' आदि में सण प्रत्यय के अकार का लोप, 'दरिद्रयति' आदि में आकार, 'ब्रष्टा' में चकार, ‘द्यति' इत्यादि में ओकार, ‘अदुः' इत्यादि में आकार, ‘असि' में सकार, 'आवेविता' में ईकार, 'ब्राह्मणायते' इत्यादि में आकार, 'जग्मतुः' इत्यादि में उपधा, ‘कारणा' इत्यादि में इन् प्रत्यय, 'गार्गीयति ' इत्यादि में य-प्रत्यय, “विद्वस्यति' इत्यादि में नकार, ‘अलविढ्वम्' इत्यादि में सिच् प्रत्यय का लोप । 'एके-हेमकरउमापतिसेन-य:-अन्य:-कैश्चित् -पूर्वपक्षवादी-वृत्तिकृत् -पण्डित-केचित् -कुलचन्द्र-अमरटीकाकार-पर-भाष्यकार-पञ्जीकृत ' आदि आचार्यों के विविध विशिष्ट अभिमत । 'सुखार्थप्रतिपत्तिगौरवनिरासार्थ-पाठसुखार्थ-उच्चारणार्थ-उत्तरार्थ-अनित्यत्वार्थ' अनेक कार्यों की सिद्धि । व्यवस्थितविभाषा-प्रतिपत्तिगौरव की चर्चा, तिप्प्रत्यय से धातुस्वरूप का निर्देश, भाषा में भी 'दीधी-वेवी' धातुओं के प्रयोग की मान्यता, तद्धितान्त शब्दों की आकृतिप्रधानता, 'अनिट्' का ग्रहण मन्दमति के बोधनार्थ तथा कुछ आचार्यों के अनुसार चेक्रीयितलुगन्त का भी भाषा में प्रयोग | १७. कि-द-ध्-ए-इ-दीर्घ-छ-आदि आदेश
३२४-५२ [ 'वक्ता' इत्यादि में 'कि' आदेश, ‘लेढा' इत्यादि में ढ् , 'अधोक्ष्यत् ' इत्यादि में घ् , 'नद्धा' इत्यादि में ध्, 'प्रष्टा' इत्यादि में ष् , 'पचेते' इत्यादि में इ, 'शाम्यति' इत्यादि में दीर्घ, ‘गच्छति' इत्यादि में छ, 'पिबति' इत्यादि में 'पिब्' आदि आदेश । 'मन्दमतिबोधार्थ-निर्देशसुखप्रतिपत्त्यर्थ-उच्चारणार्थ-प्रक्रियालाघवार्थ-तदन्तविधिनिषेधार्थ-प्रयोगनिवृत्त्यर्थप्रयोगनिषेधार्थ-तिबनिर्देशार्थ' विविध कार्यों की सिद्धि । 'अन्य-येषाम् -भाष्यकार-दुर्गसिंहकेचित् -अमर-पण्डित-उमापतिसेन-कुलचन्द्र-अपर-अनित्यवादी-टीकाकार' आदि आचार्यों