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विषयानुक्रमणी
सुषाम - प्रतिष्णात' आदि में मूर्धन्यादेश, कोटरावण – इक्षुवण - पूर्वाह्न - क्षीरपाण - क्षीरपेण - प्रणम्य - प्रणिनाय प्रणिगदति' आदि में णत्वविधान तथा 'प्रकम्पन - शत्रुघ्न - प्रनड्भ्याम् - तृप्नोति – नरानार्त - आचार्यानी - नरवाहन' आदि में णत्वनिषेध ]
३५. द्वितीयं परिशिष्टम् = रूपसिद्धिः
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पृ० ५३२ - ४७
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[ नामचतुष्टय अध्याय के प्रारम्भिक तीन पादों की दुर्गवृत्ति में प्रस्तुत 'अग्नौ - अतिमह्यम् - अनडुहः – अनेहा – अमुष्मिन् - उदीचः - अहम् - गोमान् - तिरश्चःतृष्णक् - नप्तारौ - पाचिका - पेचुषः- भाती भान्ती कुले - मघवान् - यूनः - राज्ञःश्रद्धा - सामानि - स्वसारौ - हे भो ! - हे सामन् ' आदि ६५१ उदाहरणों की सूची, जिनकी समीक्षाखण्ड के अन्तर्गत रूपसिद्धि की गई है ]
३६. तृतीयं परिशिष्टम् = श्लोकसूची
पृ० ५४८-५४
[दुर्गवृत्ति – दुर्गटीका – पञ्जिका तथा कलापचन्द्र में प्रसङ्गतः उद्धृत ७५
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श्लोकों की सूची । इसमें अर्धश्लोक भी सम्मिलित हैं ]
३७. चतुर्थं परिशिष्टम् = व्युत्पत्तिपरकशब्दसूची
पृ० ५५५ - ५८ [ दुर्गवृत्ति - दुर्गटीका - विवरणपञ्जिका तथा कलापचन्द्र नामक चार व्याख्याओं में जिन शब्दों के लौकिक विग्रह -- समास - सन्धि आदि उक्त हुए हैं - ऐसे ‘अनुषड्ङ्ग – अभिधेयसत्ता – आमन्त्रित - उपधा - ग्रामणी- दधि - द्वीप - पति - प्रत्यय - भ्रूराजन्वान् - मालान्ती - विधि-विराम - संयोग - सम्राट् - सोमप - स्वाम्पि - स्वयम्भू' आदि १५५ शब्दों की सूची ]
३८. पञ्चमं परिशिष्टम् = विशिष्टशब्दाः
पृ० ५५९ - ८२
[विषयसूचक-प्रक्रिया पारिभाषिक प्रयोग - शैली - पूर्वाचार्यप्रयोग – रूढशब्द - मतविशेषसूचक - सिद्धान्त - समन्वयबोधक लगभग ९०० विशिष्ट शब्दों का संग्रह इसमें किया गया है ]
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