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प्रास्ताविकम्
कातन्त्रकार ने पृथक्-पृथक् इ को य्, उ को व्, ऋ को र् एवं लृ को लू आदेश कहा है | पाणिनि जहाँ एक ही सूत्र द्वारा एकारादि के स्थान में अयादि आदेश का विधान करते हैं, वहीं पर कातन्त्रकार ने स्वतन्त्र सूत्रों द्वारा ए के स्थान में अय्, ऐ के स्थान में आय्, ओ के स्थान में अव् तथा औ के स्थान में आव् आदेश किया है । 'त आहुः - असा इन्दुः' इत्यादि में यकार - वकार का लोप एवं 'तेऽत्र, पटोऽत्र' इत्यादि में अकार का लोप किया गया है । पाणिनि ने ऐसे स्थलों में "एङः पदान्तादति” (६।१।१०९) से पूर्वरूप कहा है । इन दोनों प्रक्रियाओं की समीक्षा करना अत्यन्त आवश्यक है कि 'तेऽत्र, पटोऽत्र, हरेऽव, विष्णोऽव' इत्यादि में अकार का एकार-ओकाररूप हो जाना अधिक वैज्ञानिक प्रक्रिया है या उसका लुप्त हो जाना । यद्यपि दोनों ही प्रक्रियाओं में अकार समाप्त हो जाता है तथापि पूर्वरूप कहकर उसे समाप्त घोषित करने की अपेक्षा उसका लोप ही कर देना अधिक सरल प्रतीत होता है | ‘देवीगृहम्-मातृमण्डलम्' में सन्धि की संभावना होने के कारण उसके निरासार्थ “न व्यञ्जने स्वराः सन्धेयाः” (१।२।१८) यह परिभाषा बनाई गई है। तदनुसार व्यञ्जनवर्ण के पर में रहने पर स्वरवर्णों में कोई सन्धि नहीं होती । इवर्ण के स्थान में यकार आदेश करने वाला सूत्र है - " इवर्णो यमसवर्णे न च परो लोप्यः” (१।२।८)। इसमें पठित 'असवर्ण' शब्द का यदि अर्थ किया जाए - स्वभावतः विसदृश (विषम), तो ऐसी स्थिति में व्यञ्जनवर्ण के भी परवर्ती होने पर यकारादि आदेश प्राप्त होते हैं, परन्तु ऐसा अपेक्षित न होने से उसका समाधान करना आवश्यक था । इसी उद्देश्य की पूर्ति उक्त परिभाषासूत्र से होती है । पाणिनीय व्याकरण में “इको यणचि " ( ६ |१| ७७) सूत्र में 'अच्' पद का पाठ होने से उक्त प्रकार की संभावना ही नहीं होती, तथापि ‘पित्र्यम्, गव्यम्, गव्यूतिः' इत्यादि में व्यञ्जनवर्णों के भी परवर्ती होने पर स्वरसन्धि का विधान किया ही जाता है । अतः कलापव्याकरण में उक्त प्रकार की व्याख्या निराधार नहीं कही जा सकती है।
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इन कातन्त्र-सूत्रों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इसमें कार्यों का निर्देश प्रथमान्त, कार्य का द्वितीयान्त तथा निमित्त का सप्तम्यन्त किया गया है, जब कि पाणिनि ने कार्यों का षष्ठ्यन्त एवं कार्य का प्रथमान्त निर्देश किया है । पाणिनीय व्याकरण में प्रत्याहारप्रक्रिया समादृत होने के कारण जहाँ गुण - अयादि आदेश एक-एक ही सूत्र- द्वारा निर्दिष्ट हैं, वहीं पर कातन्त्रकार ने ए-ओ- अर्-अल्