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र्यानरदेवासनिगोदनो आदि बेइंद्रिय, तेई समय
प्तलघुगुर्वनुत्तरग्रैवेयकाकर्मनरतिर्यगाहारकनारकति
र्यङ्नरदेवगुरुरसङ्ख्येयघ्नो योगः। लब्धि अपर्याप्त मूक्ष्मनिगोदनो आदि समये अल्पयोग होय तेथी अपर्याप्त बादर पकेंद्रिय विकलेंद्रिय-बेइंद्रिय, तेई द्रय अने चउरिंद्रिय, असंशिपंचेंद्रिय अने संशिप'चेंद्रियनो प्रथम समये जघन्ययोग अनुक्रमे असंख्यातगुण, तेथी आधतिक-अपर्याप्त सूक्ष्मनिगोद अने बादर एकेंद्रियनो उत्कृष्टयोग असंख्यातगुण, तेथी पर्याप्त सूक्ष्म निगोद अने बादर एकेंद्रियनो लघुगुरुजघन्ययोग अने उत्कृष्टयोग अनुक्रमे असंख्यातगुण, तेथी अपर्याप्त प्रल-बेद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिद्रिय, असंक्षिपंचेंद्रिय भने संशिपंचेंद्रियनो उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण, तेथी पर्याप्त प्रसनो जघन्य अने उत्कृष्टयोग अनुक्रमे असख्यातगुण, तेथी अनुत्तरवासीदेवनो उत्कृष्टयोग असंख्यातगुण,तेथी प्रैवेयकदेवनो उत्कृष्टयोग असंख्यातगुण, तेथी अनुक्रमे अकर्म-युगलिक मनुष्य अने तिय चनो उत्कृष्टयोग, तेथी आहारकशरीरनो उत्कृष्टयोग, तेथी नारक, तिर्यंच मनुष्य अने शेषदेवनी उत्कृष्टयोग असंख्यातगुण होय छे.
हवे योगनी वृद्धि कहे छे२१३. अपर्याप्त प्रतिक्षणमसङ्ख्यगुणवीर्यम् । __ अपर्याप्त जीवमां समये समये असंख्षातगुण वीर्यवृद्धि होय छे. २१४. प्रतिस्थितिबन्धेऽसङ्ख्यलोकाः स तस्वध्यवसाया
अधिकाः।