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ष्टिगुणस्थान मां बधाय । अविरत - गुणस्थानने अंते वज्रऋष भनाराच संघयण, नरत्रिक - मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी अने मनुष्यायुष्य, अप्रत्याख्यानी चार कषाय, अने औदारिकद्विक औदारिकशरीर अने औदारिकअंगोपांग ए दस प्रकृतिओनो अंत थाथी ए विना देशविरत गुणस्थानमां सडसठ (६७) बधाय । देश विरतने अंते प्रत्याख्यानावरण चार कषायनो अंत थमाथी ए विना प्रमत्त गुणस्थानमा ६३ बंधाय । प्रमत्तने अंबे शोक, अरति, अस्थिर द्विक-अस्थिर अने अशुभनाम, अपजश अने असातावेदनीय . ए छ प्रकृतिओनो अंत थवाथी ए छ प्रकृति रहित अप्रमत्त गुणस्थानमां आहारकद्विक सहित ५८ जो आयुष्य बंधाय तो ५९. बंधाय । अपूर्वकरणगुणस्थानना कालना सात भाग करवा, तेमां प्रथमसप्तमभागमां देवायुष्यरहित ५८ बंधाय । प्रथमसप्तमभागना अंतमां निद्राद्विकनो अंत थवाथी, बीजा, श्रीना, चोथा, पांचमा अने छट्टा सप्तमभागमां ५६ बधाय | छठ्ठा सप्तमभागने अंते देवद्विक, पंचेंद्रियजाति, शुभविहायोगति, त्रसनव-त्रल, बाहर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर अने आदेय, वैकिय, आहारक, तेजस अने आहारक अंगोपांग, समचतुरस्र, निर्माण, जिननाम, वर्ण-गंधरख - स्पर्शनाम, अगुरुलघु, उपघात, पराघात अने उच्छ्रबास ए तीस प्रकृतिओनो अंत थवाथी सातमा सप्तमभागमां २६ बंधाय । सातमा सप्तमभागना अंते हास्य, रति, कुत्सा अने भयनो व्यवच्छेद थवाथी अनिवृत्तिबादरना पांच भाग छे तेना प्रथम भागमा २२ बंधाय । बोजा भागमा पुरुषवेदरहित २१, बीजे भागे अंत्य संम्वलन क्रोध विना २०, चोथे भागे संज्वलन मान रहित १९, अने पांचमे भागे संज्वलन माया