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प्राकृत
गण प्रायः इसी विचार के हैं। किन्तु आधुनिक विचारधारा के लोग प्राकृत भाषा को स्वाभाविक भाषा मानते हैं। उनका कहना है कि प्राकृत वह भाषा है जो प्रकृति से निकली हो। इस दृष्टि से प्राकृत की अपेक्षा संस्कृत कहीं अधिक कृत्रिम थी। संस्कृत का संस्कार किया गया था और बिना किसी रूप परिवर्तन के प्राकृत में प्राकृत की प्रकृति की स्वाभाविकता की रक्षा की गई थी। प्राकृत के बारे में कहा जाता है कि यह सामान्य जनता की भाषा थी। (प्राकृत जनानां भाषा)। सर जार्ज ग्रियर्सन ने प्राकृत को वैदिक भाषा से पूर्ववर्ती भाषा माना है। पुरानी विचारधारा का खण्डन करते हुए उन्होंने प्राकृत को जनप्रिय बताते हुए मूल भाषा माना है। संस्कृत से उत्पन्न नहीं। अनुमान किया गया है कि यह प्राकृत भाषा वैदिक भाषा से परवर्ती न होकर, पुरानी प्रारम्भिक काल की भाषा थी और साथ ही साथ जनता की भाषा में प्रचलित भी थी। पुरानी प्राकृत के रूपों को ग्रहण करती हुई संस्कृत विकसित हुई। प्राकृत आगे चलकर भी बोलचाल की भाषा रही जबकि संस्कृत मृत भाषा का रूप ग्रहण कर चुकी थी। शिलालेखी प्राकृत
__कुछ पाश्चात्य विद्वानों का कहना है कि प्राकृत की उत्पत्ति शिलालेखी प्राकृत से हुई है। शिलालेखी प्राकृत वैदिक प्रान्तीय बोलियों से उत्पन्न हुई हैं, जिसे कि उन लोगों ने पुरानी या प्राइमरी प्राकृत कहा है (2000 ई० पू० से 5000 ई० पू० तक का काल) यह वैदिक काल से भी पूर्व का काल है। यह प्राकृत वेद और पुरोहितों की भाषा के साथ-साथ बढ़ी। उन लोगों का कहना है कि वैदिक भाषा के साथ-साथ यह प्राकृत भी प्रचलित रही। उनका कहना है कि मन्त्रों की रचना के समय भी यह भाषा लोक में प्रचलित थी। वैदिक भाषा के समान ही उस समय सामान्य जनता की भाषा प्रारम्भिक प्राकृत या विभिन्न प्रान्तीय बोलियां प्रचलित थीं। यही प्रारम्भिक प्राकृत का परिष्कृत रूप वैदिक संस्कृत है (1500 ई० पू०), यह वैदिक संस्कृत भी साहित्यिक भाषा ही थी, जनभाषा