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वाक्य-रचना
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हिन्दी में भी इसी का विकसित रूप कर्मवाच्य का है-मैंने कहा, तुमने पढ़ा। अपभ्रंश में प्रायः कृदन्तज रूपों से ही भूतकाल की क्रिया बनायी गयी है; जैसे
मैं जाणिवे प्रिय (हेम० 4/377) मैं जाना,
तो हउँ जाणउँ एह हरि (हेम० 4/397) मैं जाना कि यह हरि है। न० भा० आ० में वर्तमान कृदन्तों तथा निष्ठा कृदन्तों का समापिका क्रिया में प्रयोग अपनी खास विशेषता है। अपभ्रंश में भूतकालिक तिङन्त का प्रयोग देखने को नहीं मिलता। (ग) निषेधात्मक प्रयोग
निषेधात्मक वाक्य प्रयोगों में जाइ क्रिया का प्रयोग प्रायः भाववाच्य में देखा जाता है जैसे
1. पर भुंजणहं न जाइ (हेम० 4/441)=भोगा नहीं जाता। 2. हिअउ न धरणउ जाइ (सं० रासक 71 क)
3. तं अक्खणह न जाइ (4/350 हेम०) (घ) वाक्य गठन सम्बन्धी अन्य विचार
___ अपभ्रंश की यह बड़ी भारी विशेषता है कि उसके वाक्य बहुत छोटे-छोटे होते हैं। इसमें वाक्यों या उपवाक्यों का संश्लिष्टात्मक प्रयोग कम पाया जाता है। मिश्रित वाक्य क्रियातिपत्यर्थ में प्रयुक्त होता है
जइ आवइ तो आणिअइ (हेम०) जइ ससणेही तो मुइअ (हेम० 8/4/367)
जइ पुच्छह घर वड्डाइँ तो वड्डा घर ओइ (हेम० 8/4/ 364)
जइ केवँइ पावीसु पिउ अकिआ कुड्डु, करीसु (हेम० 8/ 4/396)
वर्तमान कृदन्त के प्रथमा एक वचन का रूप क्रियातिपत्यर्थ में भी प्रयुक्त होता है