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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
जाता है । (पाणिनि 7,148 और इस पर काशिका का नोट ) - त्वी का ध्वनि परिवर्तन-प्पि में अनुनासिक के बाद आने पर अनुनासिक-पि में हो गया । दीर्घ स्वर का ह्रस्व करने के बाद, प को व करकेवि बना। इस नियम के अनुसार- त्वीनम् से-प्पिणु-पिणु तथा - विणु होगा (हेम० 4/ 439 और 440, क्रम० 5,53) :
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°प्पि-जिणेप्पि (हेम० 4 / 442, 2); जेप्पि (हेम० 4/440) गम्पि <* गन्त्वी < वैदिक गव है। गमेप्पि (हेम० 4 / 442 ) गेहेप्पि लहेप्पि, वुजेप्पि ( हेम० 4 / 392 ) : रमेप्पि (क्रम० 5.53 ) : करें प्पि, कृप्पि (क्रमo 5,59); ब्रोप्पि, (हेम० 4 / 391 ) लहेप्पि ( क्रम० 5,55 ); । 'प्पिणु-दय- से देपिणु <* देवीनम् (हेम० 4 / 440 ) गम्पिणु और गमेप्पिणु (हेम० 4/442 ) ; मे ल्ले प्पिणु (हेम० 4 / 341 ) यह मेल्लइ से बना है (= छोड़ना हेम० 4 / 91,433); लॅप्पिणु (हेम० 4/370;3:404);ब्रोप्पि औ वुप्पिणु (हेम० 4/391,2) करें प्पिणु (हेम० 4/396,3); रमेप्पणु (क्रम० 5,53); गृहे पिणु (हेम० 4 / 394,438,1 ); गे हेप्णुि (क्रम० 5,62) ; चऍप्पिणु <* त्यजित्वीनम् (हेम० 4 / 441, 2): लहेप्पिणु (क्रम० 5/ 55 ) ।
•वि - ध्यै का झाइवि (हेम० 4 / 331); पेक्खेवि (हेम० 4/440); पेक्खवि (हेम० 4/ 430,3); दे क्खवि (हेम० 4 / 354); मे ल्लवि (हेम० 4 / 354); मिल् का मेलवि (हेम० 4 / 429,1); चुम्बिबि, विछोडवि ( हेम० 4 / 439, 3 और 4); भणिवी (हेम० 4 / 383, 1 ); पिअवि <* पिबत्वी=वैदिक पीत्वी है (हेम० 4 / 403 ); लग्गिवि (हेम० 4 / 339); बुड्डुवि (हेम० 4 / 415) ; लाइवि = * लागयित्वी (हेम० 4 / 331,376,2); लेवि (हेम० 4/395,1,440); करेवि (हेम० 4 / 340,2); रम् धातु का रूप रमेवि (क्रम० 5, 53 ); जैन महाराष्ट्री में भी वि का रूप पाया जाता है लंघेवि, पेच्छवि, निसुणेवि, वज्जेवि, और जालेवि' (पिशेल (588); संवरेवि (हेम० 4/422,6); पालेवि (हेम० 4/ 441,2); लहेवि (क्रम० 5,55 );
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