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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
प्रयुक्त हुई हैं :- गमिहि 8/4/330 (गमल गतौ6) मिलइ7 8/4/332 सं० मिल धातु तुदादिगण में पठित है, अर्थ मिल-श्लेषणे-मिलना (परस्मैपद) तथा मिल संगमे (समागम) उभयपदी; भुंजन्ति 8/4/373 भुजा (पालनाभ्यवहारयोः) रक्षा और भोजन, भुजो (कौटिल्ये) कुटिलता। उपभोग अर्थ भी हो सकता है। गण्हइ 8/4/336 ग्रह20 (उपादाने) लेना; मारेइ 8/4/393-मृ2 (मरणे) मरना णिजन्त में मारयते, उत्तरइ 8/4/339-उत् + तृ22 (प्लवन संतर णयोः) कूदना, तरना, कर, करहि, करहु 8/4/346 डुकृञ3 (करणे) करना, एन्तु 8/4/351 इण24 (गतौ), पसरिअउं 8/4/358 प्र+सृ (उपसरणे)25. रूसइ-रूस रूसने26 (हिंसार्थायां); गणइ 8/4/358 गण27 (संख्याने) गणना, जलइ 8/4/365 जल28 (घातने) मारने (भ्वादि०) जल29 (अपवारणे) जाल, किन्तु दोहा के अर्थ को देखते हुए 'जलइ' का विकास ज्वल30 (दीप्तौ) भ्वादि से है। अतः जलइ-जल धातु तद्भव है तत्सम नहीं। खण्डइ 8/4/367 खडि मन्थे, खडि32 भेदने। अर्थ की दृष्टि से चुरादि का जान पड़ता है। सहहि 8/4/382 षह (मर्षणे) सहना, षह4 (चक्यर्थे) तृप्त होना या मारना, षह35 (मर्षणे) तृप्त होना, यह चुरादि तथा भ्वादि दोनों की धातु है। पीडन्तु 8/4/385 पीड पीडने चुरादि। फुल्लइ 8/4/387 फुल्ल विकसना-फूलना, परिहरइ 8/4/389 परि+हृ (अपहरणे) भ्वादि। चिन्तिज्जइ 8/4/396 चिति (स्मृत्याम्) स्मरण चिन्ता करना। इस 'ति' में इकार ग्रहण से चुरादि का णिच् प्रत्यय विकल्प करके होता है। पक्ष में इसका रूप भ्वादि की भाँति भी होता है। गलइ 8/4/410 गल (अदने) खाना, गल-स्रवणे, गल-आस्वादने, देउ 8/4/422 दा-दाने (जुहोत्यादि) यह तद्भव है। इच्छउं–इषु” इषणे-इच्छा।
तिङन्त प्रत्ययों से युक्त संस्कृत धातुओं के अतिरिक्त कुछ ऐसी भी धातुयें हैं जो कि हैं तो वस्तुतः संस्कृत की तत्सम धातु, परन्तु अपभ्रंश में अपभ्रंश के प्रत्ययों के साथ प्रयुक्त होने के कारण स्वरों पर या व्यंजनों पर एक्सेंट पड़ा है। फलतः तत्सम धातुओं