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रचनात्मक प्रत्यय
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36. मन्त-संज्ञा विशेषण-गुणमन्त, धनमन्त, कभी-कभी मन्त म ही अवशिष्ट रहता है। वज्जमा । मत और वत् के रूप मन्त और वन्त हो जाते हैं।
37. ल, (-र), ल्ल-संज्ञा विशेषण-प्रा० पक्कल < पक्व + अप०-एकल, पत्तल, दीहर, मोक्कल (ड) अ-णग्गल, ताहर-(उसका), तुहार, अम्हार (हम लोगों का), महार-(मेरा), वेग्गल, वंचयर (< वंचक) बहिल्ल (< बहिर)।
38. व < प्रा० भा० आo-वत्, मत् यह संज्ञा विशेषण प्रत्यय है। व < प्रा० भा० आ० वत् सामान्य प्राकृत का विकसित रूप है। परिनिष्ठित संस्कृत में मत् प्रत्यय का प्रयोग होता है। हणुव < * हनु-वत्=0 मत। अपभ्रंश में यह व से समाप्त होता है। चन्दकव (चन्द्रक-वत) दूसरी प्राकृत बोलियों में भी यह पाया जाता है।
39. वाल < प्रा० भा० आ०-वत-धन्ध=वाल-लज्जावत् (पाहड़दोहा 122), धय धन्धा और णर लज्जा के लिये प्रयुक्त हुआ है। गुत्तिवालअ < गुप्तिपालक।
40. हर (< धर) धराहर-(बादल), महिहर् (पर्वत)।
41. रिस < प्रा० भा० आo-दृष क्रिया विशेषण संज्ञा विशेषण बनाने में प्रयुक्त होता है-एरिस (ईदृष), केरिस (कीदृष) आदि।
42. ल-लि, लिय (स्त्री०) < प्रा० भा० आo-त डॉ० तगारे के अनुसार यह आल, आलु, इल्ल, और उल्ल से भिन्न है इसकी व्युत्पत्ति प्रा० भा० आ० र या ल से की जा सकती है-पोत्तली (पोत्त-पेट), अन्धलय (अन्ध), पूर्वी अपभ्रंश, णग्गल (नग्न); अल्ल-न-वल्ल (नव), पश्चिमी अपभ्रंश-महल्ल (महत), एक्कलिय ।
43. (ए) ह-उ < म० भा० आ०-इस, प्रा० भा० आ०-दृष, संज्ञा विशेषण के लिये क्रिया विशेषण में प्रयुक्त होता है जेहउ (यादृश) तेहउ (तादृश), केहउ (कीदृश) आदि।
44. ह (<-ख) +-क-प्राo-शुणहक-(कुत्ता) (पा० सुनख). अप० मेच्छहक-(लुटेरा)।