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रचनात्मक प्रत्यय
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अण < प्रा० - अण < अन (भाववाचक संज्ञा) लक्खण < लक्षण, वंटण < वर्तनं, जीवण < जीवनं, पिंधण < पिधानं, गमण < गमनं।
म० भा० आ० के पूर्ववर्ती प्रत्यय वाली धातुओं के उदाहरणजंपणय ( जम्प < /जल्प), उग्घादणि (उद्- घातय) क्रिया पद का नाम-वुज्झण, जुज्झण, जणण, घत्तण (सामान्यतया Vघत्त का सम्बन्ध घृष से किया जाता है)
(4)-इअ,-इय < प्रा० भा० आ० इक, इका, सुहच्छी, सुहच्छिअ < सुहच्छि क,-का; उल्लूरिय (उल्लूर-ईय)।
इ-ई (< इअ < -इका) (स्वार्थे स्त्रीलिंग) लइ < लइअ < लतिका, कित्ती < कित्तिअ < कीर्तिका, चन्दमुही < चंदमुहिअ < चंदमुखिका, णारी < णारिअ < नारिका, भूमी < भूमिअ < भूमिका ।
(5) इर (ताच्छिल्य) के भाव में प्रयुक्त होता है। (इसका प्रयोग ऋग्वेद में भी पाया जाता है-अजिर (शीघ्र), ध्वसिर (क्षीण) इसिर, अजिर आदि) विशेषण; यह प्रायः पूर्ण कालिक क्रिया में प्रयुक्त होता है। प्रा०, अप०-घोलिर (चक्कर लगाना) हसिर (स्त्री०-हसिरी) मुस्कुराना, णच्चरि (स्त्री०) (नाचना); वज्जिर (ध्वनि करना), तच्च-जम्पिर (निष्प्रयोजन बात करना), बहु-सिखिरि (स्त्री०) (बड़ा विद्वान); भीइर (भयभीत) (वसु०) कील्लिरी (कृद)-कृदन शील, हिंसिर (/हिंस) = हेषणशील, चाविर (चर्व) = चर्वणशील, गसिरु (ग्रस)=ग्रसन-शील, कन्दिर ( क्रन्द) हल्लिर (हल्ल) हसिर (हस)।
(6) इम-अ० मा०-खाइम, गणहिं, अप०-खाइम, साइम ( स्वद)।
(7) इल्ल < प्रा० भा० आ०-र या ल-सोहिल्ल, कडिल्ल, खडिल्ल, पहिल्ल, कुंभिल्ल, लोहिल्ल, पुच्छिल्ल, पुव्विल्ल, रसिल्ल ।
(8) एव्व < प्रा० भा० आ०-तव्य-वंचेव्व (Vवंच), जाणेव्वि (Vजाणे)।
(9) ग < प्रा० भा० आ०-क-खमग=क्षमक < = क्ष्म - राक्षपक < Vक्षप-जाणग ( जाण)=ज्ञायक;