________________
338
हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
तिव
. 8/4/357 तहिं (तत्र) वहाँ
कहिं क्व (कहाँ) 8/4/376
तथा 8/4/383
कित्तिउ कितना
वारइवार वारवार 8/4/385
शीघ्र 8/4/387 जाम
जब तक 8/4/391 इत्तउँ इतना
सव्वेत्तहे (सर्वत्र) सभी जगह कुछ और अव्यय शब्द हो सकते हैं जो कि हेमचन्द्र के अपभ्रंश दोहों में पाये जाते हैं। (1) संज्ञा पदों से निर्मित अव्यय-खण, खणो अहंणिसं, लह। (2) अन्य पदों से निर्मित अव्यय-अज्जु, णिच्च-णित्ता (नित्यं), णिह-णिहुअ (निभृतं), भित्तरि (अभ्यंतर), णिअल (निकटे) परहि (परतः) परि पासे (पार्वे) अग्गे (अग्रे) पुर (पुरतः) फुर बहुत्त झत्ति (झटिति) णाइ (हि० नाइँ)।
- संख्यावाचक शब्द
संख्यावाचक विशेषण के गणनात्मक तथा क्रमात्मक दोनों तरह के रूप अपभ्रंश में पाये जाते हैं(1) गणनात्मक संख्यावाचक विशेषण
गणनात्मक संख्यावाचक विशेषण के रूप निम्न प्रकार हैं- (1) एक्क, एक्को, एक्कं, ऐक्कु एक्कउ, एक्के, एक्कइ, एक, एक्का, सविभक्तिकं रूप एक्केण, एक्के, एक्कक्के (< सं एक्के) एकल्ल और एक्कल्ल आदि से प्रतीत होता है कि सर्वत्र म० भा० आ० एक्क शब्द का प्रचलन था। इन रूपों के साथ साथ एक, इग और एय का भी प्रयोग होता था । 'क' प्रत्यय जोडकर पश्चिमी अपभ्रंश में एक्केक्क, इक्किक्क