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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
(5) सम्बन्ध-मुद्ध + ङस् के स्थान पर हे होकर मुद्धहे रूप बनता है। ऐसा प्रतीत होता है कि स्त्रीलिंग के पंचमी एवं षष्ठी में कोई भेद नहीं रह गया था। दोनों जगह हु=मुद्धहु रूप होता है। यह अपभ्रश का अपना रूप है। यहाँ प्राकृत के रूपों से अपभ्रंश के रूपों में कोई समता नहीं है। प्राकृत षष्ठी बहुवचन में ण तथा णं विभक्ति होती है जो कि संस्कृत णाम् से बना है।
(6) अधिकरण-मुद्ध+ ङि विभक्ति के स्थान पर हि आदेश होकर मुद्धहि रूप बनता है। यह भी अपभ्रंश का अपना ही रूप है। पंचमी एवं षष्ठी में भी हे से हि हो जाता है। इस प्रकार अपभ्रंश के कारक रूपों में समता सी आ गयी। पुल्लिंग इकारान्त उकारान्त सप्तमी एक वचन में भी हि विभक्ति होती है।
बहुवचन मुद्ध+सुप् के स्थान पर हिं आदेश होकर मुद्धहिं रूप बनता है जो कि संभवतः संस्कृत सार्वनामिक स्म्नि से बना है। अदन्त पुल्लिंग में भी हिं विभक्ति होती है।
स्त्रीलिंग के इ, ई, उ, ऊकारान्तादि सभी शब्दों के रूप इसी तरह होंगे । एक व०
बहुवचन मुद्धा, मुद्ध मुद्धाउ, मुद्धाओ, मुद्ध, मुद्धा मुद्धा, मुद्ध मुद्धाए, मुद्धए. मुद्धाहिं, मुद्धहिं
मुद्धइ पं० मुद्धहे, मुद्धाहे मुद्धाहु, मुद्धहु चतुःषष्ठी मुद्धहें, मुद्धहिं, . मुद्धहं
मुद्धहि, मुद्धहो मुद्धहे, मुद्धहि मुद्धहिं, मुद्धाहिं
मुद्धए सम्बो० मुद्ध
मुद्धउ, मुद्धाउ
सप्त०