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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
(इ) अनुनासिक व्यंजन + अन्तस्थ = अनुनासिक व्यंजन का द्वित्व।
न् + य = ण्ण-कण्ण < कन्या । ण + य = ण्ण-पुण्ण < पुण्य, हिरण्ण < हिरण्य । (3) संयुक्त व्यंजन की विकार प्रक्रिया
संयुक्त व्यंजन की विकार प्रक्रिया खास होती है। उनमें से कुछ मुख्य ये हैं :
क्ष-आदि के क्ष का ख, छ, झ, घ आदि विकार होते हैं :
खवण < क्षपणक, हे० 8/4/377 खयगालि < क्षयकाले, लक्खेहिं < लः, जोअण लक्खु < योजन लक्षमपि, छण < क्षण, छार < क्षार, छीणं, छिज्जइ < क्षीणं हे0 8/4/336 वच्छहे < वृक्षात्, असुलहमेच्छण < असुलभमेक्षण, झिज्जइ < क्षीयते, चित्त < क्षिप्त।
शब्दान्तवर्ती हो तो क्ष का क्ख, च्छ, ज्झ होता है :-कडक्ख < कटाक्ष, विक्खेव < विक्षेप, रिच्छ < ऋक्ष, तच्छ < तक्ष, विच्छोइय < विक्षोभित, उज्झर < उत्क्षर *, कभी-कभी ह भी होता है (क्ख > ख > ह) निहित्त < निक्षिप्त (हे0 8/2/17)।
(4) श्च, त्स, प्स् थ्य का अपभ्रंश में च्छ होता है-पच्छं < पथ्यं, मिच्छा < मिथ्या, मिच्छत्त, < मिथ्यात्व, पच्छिमं < पश्चिम, अच्छेरय < आश्चर्यक, मच्छर < मत्सर, उच्छव < उत्सव, उच्छंगि < उत्संगे, अच्छरा < अप्सरस्।
(5) ऊष्माक्षर + प्रथम अघोष व्यंजन संयुक्त व्यंजन के आदि में आवे तो द्वितीय व्यंजन को सोष्म अघोष व्यंजन हो जाता है। दो स्वर के बीच में संयुक्त व्यंजन आवे तो प्रथम अघोष को द्वितीय सोष्म व्यंजन बनाकर संयुक्त व्यंजन बना दिया जाता है।
दन्त्य व्यंजन के स्थान पर तालव्य व्यंजन होता है :-त्य, थ्य, द्य, र्य, य्य, ध्य को च्च, च्छ, ज्ज, ज्झ होता है। अच्चंत < अत्यन्त, पच्चक्ख < प्रत्यक्ष, मिच्छत्त < मिथ्यात्व, अज्जु < अद्य, उज्जाण <