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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
ड़ + व = व्व-छव्वीस < षडविंशति । त् + क = क-उक्कण्ठा < उत्कण्ठा, बलक्कार < बलात्कार । त + ख = क्ख-उक्खअ, उक्खय < उत्खात। त् + प = प्प-उप्पल, < उत्पल, सप्पुरिस < सत्पुरूष। त् + फ = प्फ-उप्फुल्ल < उत्फुल्ल, उप्फाल < उत्फाल |
द् + ग = ग्ग-उग्गम < उद्गम, उग्गीरय < उद्गीरय, मोग्गर < मुद्गर।
द् + घ = ग्घ-उग्घाअ < उद्घात् । द् + ब = ब्ब-बब्बुअ < बुबुद्, उब्बोह < उद्बोध । द् + भ = म-सब्भाव < सद्भाव, प् + त = त्त-सुत्त < सुप्त, पज्जंत < पर्याप्त । ब् + ज = ज्ज-खुज्ज < कुब्ज, ब् + द = ६-सद्द < शब्द । ब् + ध = द्ध-आरद्ध < आरब्ध, लद्ध < लब्ध। (ख) पूर्व सावर्ण्य भाव (Progressive Assimilation)
(अ) यदि अनुनासिक संयुक्त व्यंजनों का दूसरा वर्ण हो तो यह अन्तिम वर्ण पहले आये हुए वर्ण में जुड़ जाता है अर्थात पूर्व वर्ण की तरह होकर द्वित्व हो जाता है।
ग + न = ग्ग–अग्गि < अग्नि, उविग्ग < उद्विग्न, पिशेल के अनुसार उविण्ण < * उदवृण्ण भी होता है जो कि वैदिक धातु व्रद या * वृद् धातु का रूप है जिसमें उद् उपसर्ग लगाया गया है। मौलिक ऋ वुण्ण और उव्वुण्ण रूप ठीक है। रुग्ग < रुग्ण ।
त् + न = त्त-पत्ती < पत्नी, सवत्त < सपत्न, णीसवत्त < निः सपत्न, सवत्ती < सपत्नी, पअत्त < प्रयत्न, पप्पोदि < प्राप्नोति।
ग् + म = ग्ग-जुग्ग < युग्म, तिग्ग < तिग्म, वग्गि < वाग्मिन्, जग्ग और तिग्ग का जुम्म और तिम्म रूप भी बनता है।
क + म = प्प-रूप्पिणी < रूक्मिणी,