________________
ध्वनि-विचार
259
शब्द के आरम्भ का संयुक्त व्यंजन तीन तरह का होता है। (1) प्रथम व्यंजन की रक्षा और दूसरे का लोप करना (2) संयोजन (Assimilation) (3) और तीसरा है विप्रकर्ष स्वर का प्रक्षेप (Anaptyxis)
(1) आदि संयुक्त व्यंजन का द्वितीय व्यंजन य, र, ल, व होता है। उसमें प्रथम व्यंजन की रक्षा होती है और दूसरे का लोप कर दिया जाता है।
___ यः जोइसिउ < ज्योतिषिन्, चुक्की < च्युता, वावारउ < व्यापार, चायइ < त्यजति, वामोह < व्यामोह ।
रः कील < क्रीडा, पडिक्त्त < प्रतिपत्ति, सुव्वइ < श्रु + अति, पेम्म < प्रेमन
वः जालइ < ज्वालयति, सर < स्वर, दीव < द्वीप।
(2) र् के पूर्व स् व्यंजन, व् के पूर्व स् के उदाहरणों में विप्रकर्ष स्वर का आक्षेप कर लिया जाता है। लू के पूर्व का व्यंजन उसी तरह रहता है।
(3) संयोजन (Assimilation)-सामान्यतया संयुक्त व्यजनों के पूर्व के स् से युक्त संयुक्त व्यंजन का संयोजन होता है।
(क) स् + क वर्ग के प्रथम अक्षर (तालव्य के मूर्धन्य वर्ग का प्रथम अक्षर के बिना) का द्वितीय अक्षर हो जाता है (इस प्रक्रिया में स् = ह का व्यत्यय होता है अगर स्पर्श ऊष्म के साथ रहे) खंध < स्कंध खलिय < स्खलित, थंभ < स्तंभ, थुइ < स्तुति, थण < स्तन, फंसइ < स्पृशति, फंसइ < स्पंदते, थोव < स्तोक ।
(ख) स् + तालव्य के मूर्धन्य के सिवाय द्वितीय अक्षर ही रहता है-खलइ < स्खलित, थिअ < स्थित, फार < स्फार ।
(ग) एह < स्नः ण्हा इवि < स्नात्वा, किन्तु णेह < स्नेह भी होता है। स < रम सरइ < स्मरति का सुमरइ रूप भी होता है।