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________________ व्याकरण प्रस्तुत करने की विधि आ० के वर्तमान कालिक क्रिया रूपों पर आधारित हैं । ध्वन्यात्मक परिवर्तन के कारण रूपों में परिवर्तन अवश्य हुआ है किन्तु अपभ्रंश के क्रिया रूप पूर्वोक्त पद्धति पर ही आधारित हैं। इस तरह अपभ्रंश न० भा० आ० का प्रतिनिधि है । 223 अपभ्रंश धातुएँ प्रा० भा० आ० की तरह 'सकर्मक' और 'अकर्मक' रूपों में विभक्त हैं । अपभ्रंश के क्रिया रूपों की पद्धति प्रा० भा० आ० पर आधारित होते हुए भी सामान्यतया ध्वन्यात्मक रूप में परिष्कृत है या भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से नवीन रूप में रची हुई है । प्रा० भा० आ० की क्रिया पद्धति का आधार है - ( 1 ) वर्तमान कालिक कर्तृवाच्य (2) वर्तमान कर्मवाच्य (3) वर्तमान, भूत कृदन्त और (4) शब्द ध्वनि पर आधारित। इन्हीं आधारों को क्रिया प्रकरण में विस्तृत किया गया है। प्रेरणार्थक क्रिया का प्रत्यय 'आय' और 'आव' है । कभी-कभी आदि कालीन रूपों के अ की वृद्धि भी होती है (और इ उ को गुण भी होता है)। कभी कुछ आदि कालीन और सामयिक रूप भी दीख पड़ते हैं । आव का आ हिन्दी में दीखता है - पढ़ना, पढ़ाना, पढ़वाना और न० भा० आ० में आर, आल और आद पाया जाता है । वर्तमान काल का रूप संस्कृत काल से निरन्तर दिखाई देता है । संस्कृत और प्राकृत की छाप अपभ्रंश पर दीख पड़ती है। यह ध्यान देने की बात है कि अपभ्रंश का विशुद्ध रूप उत्तम पुरुष एक वचन अउं रूप प्र० पु० कर्ता ए० व० के प्रभाव के कारण है । सर्वनाम के अन्तिम-अउं < प्रा० भा० आ० - अकम् का है । मध्यम पु० ए० व० में अहि < प्रा० भा० आ० आज्ञा । पश्चिमी अपभ्रंश के म० पु० ए० व० में धि रूप भी प्रचलित था, असि का भी प्रयोग पाया जाता है। यह महाराष्ट्री अपभ्रंश और आधुनिक मागधी भाषाओं में भी पाया जाता है । अन्य पु० ए० व० अइ < प्रा० भा० आ० अति का रूप है और यह न० भा० आ० के अ० पु० ए० व० में भी पाया जाता है । पूर्वी अपभ्रंश में अ < अइ का रूप बहुत कम पाया जाता है। वर्तमान काल आज्ञा के रूपों से प्रभावित है, तीन रूपों में मध्य० पु० ब० व० अहु और अह आज्ञा म० पु० ब० व० में प्रयुक्त होता है । यह प्रा० भा० आ० के म० पु० * थस्
SR No.023030
Book TitleHemchandra Ke Apbhramsa Sutro Ki Prushthabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanath Pandey
PublisherParammitra Prakashan
Publication Year1999
Total Pages524
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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