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हेमचन्द्र के अपभ्रंश सूत्रों की पृष्ठभूमि
व्याकरण और देशी शब्द तथा अर्थ से गाढ़ आदि लक्षणों से युक्त काव्य दूसरे कवियों ने भी लिखे हैं, तो भी क्या उनकी शंका से दूसरा कोई अपना भाव प्रकट न करे । तात्पर्य यह है कि देशी शब्दों में अनेक काव्य उच्चकोटि के बन चुके हैं तथापि मैं भी देशी शब्दों में काव्य बनाने का साहस कर रहा हूँ। संदेश रासककार के कवि अब्दुल रहमान ने काव्य के आरम्भ में नम्रता प्रकट करते हुए कहा है कि जो लोग पंडित हैं वे तो मेरे इस कुकाव्य पर कान देंगे ही नहीं और जो मुर्ख हैं-अरसिक हैं-उनका प्रवेश मूर्खता के कारण इस ग्रन्थ में हो ही नहीं सकेगा। इसलिये जो न पंडित हैं, न मुर्ख हैं, अपित मध्यम श्रेणी के हैं, उन्हीं के सामने हमारी कविता सदा पढ़ी जानी चाहिए
णहु रहइ बुहा कुकवित्तरेसि, .
अबुहत्तणि अबुइह णहु पवेसि। जिण मुक्खण पंडिय मज्झयार,
तिह पुरउ पठिब्बउ सब्बवार ।। इस पर पं० हजारी प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि यह काव्य बहुत पढ़े लिखे लोगों के लिये न होकर ऐसे रसिकों के लिये है जो मुर्ख तो नहीं हैं पर बहुत अधिक अध्ययन भी नहीं कर सके हैं।
__ इस प्रकार पूर्वोक्त कवियों की बातों पर ध्यान देने से यही प्रतीत होता है कि 'देशी' शब्द का प्रयोग जनभाषा के रूप में प्रयुक्त हुआ है। प्राकृत और अपभ्रंश के कवियों ने अपने काव्य को देशभाषा यानी जनभाषा के रूप में प्रयुक्त किया है। श्री एल० वी० गाँधी तथा डा० जैन का यह मत समीचीन नहीं प्रतीत होता कि देश भाषा और अपभ्रंश भाषा एक ही हैं।46 यह अवश्य है कि अपभ्रंश भाषा जनभाषा के बहुत समीप है। अपभ्रंश साहित्य में देशी शब्दों की प्रधानता है। किन्तु यह शब्द किसी विशिष्ट भाषा के लिये रूढ़ नहीं हुआ था ।47 हिन्दी के कवियों ने भी अपने काव्य को देश भाषा यानी जनभाषा कहा है। गो० तुलसीदास ने भी मानस की भाषा को 'भाषा' कहकर पुकारा है। अतः देशी या देशभाषा का प्रयोग समसामयिक भाषा काव्य के लिए