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अध्याय दो आत्म-समीक्षण के नव सूत्र
सूत्र : १:
मैं चैतन्य देव हूँ। मुझे सोचना है किमैं कहाँ से आया हूँ, किसलिये आया हूँ?
चार गति चौरासी लाख जीव योनियों में भटकते हुए मुझे समझना है कि दुर्लभ मानव जीवन आदि किस पुण्योदय से प्राप्त हुए हैं तथा जड़-चेतन संयोग, सुख-दुःखानुभव एवं संसार के संसरण का क्या रूपक है? यह समझकर मैं मूर्छा-ममत्व को हटाऊँगा, राग-द्वेष और प्रमाद को मिटाऊँगा एवं अपने जीवन को सम्यक्, निर्णायक, समतामय व मंगलमय बनाऊँगा।
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