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तथा अक्षय सुख के रूप में मोक्ष प्राप्ति को बना लूंगा तो यह भी निश्चय कर लूंगा कि मैं वीतराग देवों की आज्ञा में रहता हुआ एकावधानता से रत्नत्रय की सफल आराधना करूं।
मैं मूल में ज्ञानपुंज हूं, समत्व योगी हूं तो मुझे अपने मूल स्वरूप को अनावृत्त करना ही है कि मैं व्यक्त रूप से ज्ञानपुंज एवं समत्व योगी बन जाऊं। इस दृष्टि से मैं संकल्प लेता हूं कि मैं अपनी सम्पूर्ण निष्ठा के साथ सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन एवं सम्यक् चारित्र की आराधना करूंगा तथा योग शुद्धि व कषाय मुक्ति की ऊर्ध्वगामी गति के माध्यम से आत्मिक गुणस्थानों के सोपानों पर आरूढ़ होता हुआ क्रमिक रूप में आत्मोन्नति करता जाऊंगा। मैंने जान लिया है कि समत्व योग की सर्वोच्च साधना से ही मैं अमिट शान्ति एवं अक्षय सुख की प्राप्ति कर सकूँगा अतः दृढ़ संकल्प पूर्वक मैं मोक्ष के पथ पर आगे बढ़ता जाऊंगा।
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