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अंधा व्यक्ति खुशी के मारे लंगड़े व्यक्ति से लिपट गया क्योंकि वह अपने अंधेपन के भारी कष्टों को भुगत चुका था और बोला—लो भाई हम दोनों लिपट कर एक हो गये हैं, अब बताओ राह । लंगड़े व्यक्ति ने तब समझाते हुए कहा—मेरे पांव नहीं है और तुम्हारे पांव हैं। तुम्हारे आंखें नहीं है,
और मेरी आंखें हैं। मैं तुम्हारी आंखें बन जाऊं और तुम मेरे पांव बन जाओ -बस हम दोनों चल पड़ेंगे। फिर जहां भी हम पहुंचना चाहेंगे, खुशी से पहुंच सकेंगे।
___ फिर क्या था? अंधे ने लंगड़े को अपने कंधों पर बिठा लिया। फिर लंगड़ा स्पर्श के संकेतों से अंधे को रास्ता बताता रहता और अंधा अपने मजबूत पांवों से चलता रहता। एक की चमकदार आंखें और दूसरे के मजबूत पांव जब तक अलग अलग थे, दोनों व्यर्थ हो रहे थे और बीहड़ जंगल में पड़े हुए थे भटक रहे थे। लेकिन जब दोनों एक हो गये तो गति बन गई-केवल गति ही नहीं, सुमार्गगामी गति बन गई।
मैं सोचता हूं कि ज्ञान लंगड़ा होता है और क्रिया अंधी। ज्ञान चल नहीं सकता और क्रिया देख नहीं सकती। क्रिया बिना ज्ञान ठहरा रहेगा और ज्ञान के बिना क्रिया भटकती रहेगी। और जब दोनों एक बन जायेंगे तो सीधे और सपाट मार्ग पर तीव्र गति से प्रगति कर लेंगे।
___ मैं ज्ञानपुंज हूं इसीलिये ज्ञान को साधता हूं—प्रकाश की किरणें फैलाता हूं। ज्ञान के प्रकाश में ही मैं सत्य मार्ग की शोध करता हूं और अपने शाश्वत गंतव्य का निर्धारण करता हूं। मैं समत्व योगी हूं, तभी तो आचरण की महत्ता को समझता हूं -गति के आनन्द का अनुभव लेता हूं। प्रकाश और प्रगति मेरे सहचर बन जाते हैं।
मैं ज्ञानपुंज और समत्व योगी बनने की अपनी आत्मिक शक्ति को पहचान चुका हूं तो मेरा दृढ़ विश्वास बनता है कि मैं एक दिन ज्ञान पुंज और समत्व योगी बन भी जाऊंगा।
मैं ज्ञानपुंज और समत्व योगी बन जाऊंगा किन्तु कब? मैं ज्ञान और क्रिया की समवेत साधना करूंगा और वह भी उन वीतराग देवों की आज्ञा में रहकर- जिन्होंने स्वयं ने ऐसी समवेत साधना सिद्ध की और संसार के समक्ष न सिर्फ अपना आदर्श ही प्रस्तुत किया, अपितु वह सुपथ भी प्रशस्त किया है जिस पर चलकर सभी भव्य आत्माएं ज्ञानपुंज और समत्व योगी बन सकती हैं। मैं भी उसी पथ पर अटल निश्चय और निश्चल गति से आगे बढुंगा–मोक्ष-पथगामी बनूंगा।
मोक्ष का राजमार्ग मेरा ज्ञान सजग बनता है और मैं यह जानना चाहता हूं कि मोक्ष क्या है ? और वहां पहुंचने का राजमार्ग कौनसा है ? मैं आप्त वचनों का स्मरण करता हूं और जानता हूं कि सम्यक् ज्ञान सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र और तप ये चारों मोक्ष मार्ग अर्थात् मोक्ष प्राप्ति के उपाय हैं जिनकी आराधना करने से आत्मस्वरूप का विकास होता है। सम्यक् ज्ञान द्वारा आत्मा जीव अजीव आदि तत्त्वों व पदार्थों को जानती है, सम्यक् दर्शन द्वारा उन पर श्रद्धा करती है, चारित्र द्वारा नवीन कर्मों को आने से रोकती है तथा तप द्वारा पुराने कर्मों को क्षय करके शुद्ध स्वरूपी बनती है।
__ मैं चिन्तन करता हूं कि जब मैं जीव, अजीव आदि तत्त्वो को भलीभांति जान लेता हूं तो सब जीवों की नानाविध नरक तिर्यंच आदि गतियों को भी जान लेता हूं और तदनुसार पुण्य, पाप, बंध और मोक्ष को भी जान लेता हूं। जब मैं पुण्य, पाप, बंध और मोक्ष को जान लेता हूं तो देवता और मनुष्य सम्बन्धी समस्त काम भोगों को असार जानकर उनसे विरक्त हो जाता हूं एवं माता पिता
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