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बंध से लेकर सम्पूर्ण कर्म क्षय तक का और मेरे इस पुरुषार्थ का अवलम्बन होगा वह दयामय सुधर्म जो अन्तःकरण को करुणा से आप्लावित करता हुआ समस्त विश्व को दयामय बना देने की क्षमता रखता है।
सुमर्यादित रहकर मैं संकल्प लेता हूँ कि मैं ऐसे दयामय धर्म की आराधना करूंगा। लोक कल्याण से अपनी महानता का निर्माण करूंगा तथा 'एगे आया' की दिव्य शोभा को साकार रूप
दूंगा।
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