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अध्याय पांच आत्म-समीक्षण के नव सूत्र
सूत्र : ४ :
मैं सुज्ञ हूँ, संवेदनशील हूँ।
मुझे सोचना है कि मेरा मानस, मेरी वाणी और कार्य तुच्छ भावों से ग्रस्त क्यों हैं?
अनुभूति के क्षणों में मुझे ज्ञात होगा कि अष्ट कर्मों की जड़ग्रस्तता ने मेरी मूल महत्ता किस रूप में ढक दी है, मेरे पुरुषार्थ को कितना दबा दिया है और मेरे स्वरूप को कैसा विकृत बना दिया है? यही मेरी तुच्छता व हीन भावना का कारण है, जिसे मैं धर्माराधना से दूर करूंगा। मन, वाणी व कार्यों में लोक कल्याण की महानता प्रकटाऊंगा और 'एगे आया' की दिव्य शोभा को साकार रूप दूंगा।