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अध्याय तीन आत्म-समीक्षण के नव सूत्र
सूत्र : २ :
मैं प्रबुद्ध हूँ, सदा जागृत हूँ। मुझे सोचना है किमेरा अपना क्या है और क्या मेरा नहीं है।
प्रबुद्धता की वेला में मुझे विदित होगा कि मिथ्या श्रद्धा, मिथ्या ज्ञान एवं मिथ्या आचरण मेरे नहीं हैं, परन्तु पर-पदार्थों के प्रगाढ़ मोह ने मुझे पाप कार्यों में फंसा रखा है। मैं मिथ्यात्व को त्यागूंगा, नवतत्त्व की आधारशिला पर सम्यक्त्व की अवधारणा लूंगा एवं आत्म नियंत्रण, आत्मालोचना व आत्म-समीक्षण से अपने मूल गुणों को ग्रहण करता हुआ संसार की समस्त आत्माओं में एकरूपता के दर्शन करूंगा।
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