SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जोइए । संघ भेला होयके इस बात का निरना करो । तिवारे शेठने कह्या - ए अछी बात है पिण घणे लोक भेले होवेंगे तो किसेकी मती किसे रीतकी हे ? किसे की किसी हे ? ते कोइ कुछ बोलेगा कोइ कुछ बोलेगा । ए बात अछी नही । ___ तुम जहां मुखपत्ति बंधणी कही हे ते पाठ तथा शास्त्र मेरे पास ले आवो । घणे लोक भेले होवेंगे तो कोइ मूलचंद के रागी हे । तथा मूलचंद बी सूत्र टीका ग्रंथ वांचे हे । तथा वृधिचंद बी सूत्र टीका ग्रंथ वांचे हे । तथा मूलचंदजी बूटेरायको बी साथ लावेगा । तथा बूटेराय आवेगा तो नेमसागर का साधु संतीसागर ने बूटेराय साथ चर्चा करके संतीसागर बी मुखपत्ति कना विष नथी घालता ते पिण बूटेराय के साथ आवेगा । ते पिण टीका पढ्या सूत्र ग्रंथ पढया होया हे । तिहां तो एक झगडा चलेगा पिण किसने मनणी नही । तुम इम करो-में तो रहा बीच मे । तुम आपणी धारणा में मुखपत्ति जहां बंधणी लिखी होवे ते लिख कें मेरे को देवो में मूलचंद के पास लेके जावागा । उसके पासो उतर मागागा । जौणसा उतर देवेंगा ते तुमारे पास उसके दसखत लखाय के भेज देवेगा । तुम उसका उतर लीखके दोनो चिटीयां मेरे पास भेज देजो । फेर तुमारे लिखत में मूलचंद को देवागा । इम करतां जब सारी चरचा हो जावेगी तब हम तथा तुम स्याणे२ भाइ इकठे होयके निरना कर लेवेगे । जिसको जूठा जाणेगे तिसको संघ सिख देवेगा । तिवारे ते बोले-पहिली प्रश्न मूलचंद लिखे । तिवारे शेठ बोल्या-अछा ! मूलचंद को में पूछागा । जेकर मूलचंदजी मुखपत्तिकी चरचा का प्रश्न लिख देवेगा तो में तुमारे पास भेज देवागा । तुम उसका उतर लिखके दोनो चिठी भेज देजो । तिनाने कह्या अछी बात है. हम प्रश्न का उत्तर लिख भेजागे । शेठने मूलचंद को कह्या-भाइ ! इम सलाह कर गय हे । तुमारी मरजी हे तो चरचाका प्रश्न लिख देवो । में उनाको पुचाय देवागा । मूलचंदने कह्या-अछी बात हे में लिखके आपके पास पहचाय देवागा । मूलचंदने लिख्या-तुम मुखपत्ति कथा में बंधते हो सो आपणी खसिते बंधते हो के किसे सूत्र ते बंधते हो के किसे परंपराय में बंधणी लिखी हे वा किसे आचार्यजी महाराजने बंधणेकी आज्ञा दीनी हे-मुखपत्ति मुखको बंधके कथा करज्यो । इस प्रश्न का उत्तर भेजणा । मूलचंदने मोहपत्ती चर्चा * ३७
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy