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श्री वीतरागाय नमः
अथ श्री बुद्धिविजेजी एटले श्री बूटेरायजी कृत मुखपत्तिकी चरचा लिख्यते ॥
कर्मविदारणखडगसम ॥ तपेविराजत जोय ॥
अमितवीर्ययुत वंदीये ॥ वीर ज्ञातसुत सोय कामधेनु अरु सुरतरु | चिंतामणीसमान ॥ गणधरगौतम गाइए || केवललब्धिनिधान ॥ २ वीरपटोधरगुणनिधी ॥ नमीये सोहमसामि ॥ विचरे मुनिवरसंपदा || आज जासके नाम || ३ हेतु देवगुरुनमनको ॥ नमन करी धरी प्रीति ॥ चरचा 'मुनिमुषवस्त्रकी ॥ " लिघू जिनागमरीति ॥ ४ आठपुडो मुखपोतिकरि ॥ तामे दोरा घाल ॥ मुष बांधे काने करी ॥ नित ते ढूंडक भाल ॥ ५ काने पोवे नाकपर ॥ थापे जे मुखपोति ॥ प्रस्तावे व्याख्यानके । यतिसंवेगी सोत ॥ ६ करथापित मुखपोतिसे ॥ मुष ढकी बोलण जेह ॥ जाते लगे न पाप जिम ॥ कहे जैनमुनि तेह ॥ ७ इन तिनोमु कौणसी ॥ मुनिमुद्रा असली य ॥ परमपराकी जाणीये ॥ जसु मन शंका ईय ॥ ८ तसु मन निर्मल करणको | "करी वचनका सार ॥ बुद्धिविजेमुनिराजने ॥ सुनो भविक नरनार ॥ ९
१. मुखवस्त्र - मुहपत्तिकी । २ लिखू । एवं ष को ख सर्वत्र जानें । ३ जीससे । ४ यह ५ श्री जिनवचन को प्रधान कर ।
मोहपत्ती चर्चा * 9