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गोत्र बंध्या । तथा आत्मानी असुध परणत थइ तो तीर्थंकर गोत्र बिखर गया । इत्यादिक घणी चर्चा छे । सिधांते जोइ लेजो । मेरे विचार में आया सो में लिख्या छे । आगें बहु श्रुत कहे ते प्रमाण । इत्यादिक चरचा महानिशीथ के पांचमे अध्यन में जोइ लेजो । इस पाठको विचारीनें कोइक गीतार्थ इना कुमतीया के साथ वाद विवाद करेगा तथा इना को हित सिख्या देवेंगा ते पुरुष इस भव परभव दुख पावेगा । कोइक पुन्य जोगे बचे तो महा भागवंत जाणवा । इना पखंडियाने नाम मात्र संघने श्रीकमलप्रभ आचार्य को छतीस गुणा के धारक को वाद विवाद करीने अनंत संसार रुलाया । तो बीजे समान पुरुष को चार गतीमें भटकावे तो कुछ आश्चर्य नथी । इम जाणीने कोइ आत्मा अर्थी पुरुष मोन करीने रह्या होवेगा तो ज्ञानी जाणे । परंतु प्रत्यक्ष मेरे देखणे में कोई आया नही । कोइ होवेगा तो ज्ञानी जाणे । देखणेमें तो घणे मती आवे हे । तत्त्व तो केवली जाणे । जिम ज्ञानी कहे ते प्रमाण । फेर मेंने विचार करी - मत तो मैंने घणे देखे । पण कोइ मती मेरे विचार मे ' आमदा नथी । तथा ओर खेत्रमें सुण्याबी नथी । जो फलाणे देशमें जैन धर्मी विचरे हे । किते दुर किसे खेत्रमें विचरते होवेंगे तो ज्ञानी जाणे । पिण इहां तो कोइ विरला होवेंगा तो एकंत निषेध नहीं करी जाती । किंस वास्ते वीतरागे इकीस हजार वरस जिनशासन का हे । इसमे कुछ संदेह नथी । पिण मेरी सरधा तो श्री जसोविजयजी के साथ घणी मिले हैं । जिम उपाध्यायजी नाम मात्र तपे गछका कहलाता था तिम मेरेको बी नाम मात्र तपे गछका कहीलाया जोए ।
मेंने उपाध्यायजी के अणुराग करके एक नाम मात्र श्री उपाध्यायजीकी समाचारी के पखी देखके लोक व्यवहार मात्र समाचारी अंगीकार करी । राजनगर मध्ये रुपविजेके डेले मध्ये सुभागविजे तथा मणीविजे पासो गछधारीनें हम १ तथा मुलचंद २ तथा वृद्धिचंद सेठा की धर्मशाला में चले आय । एता उनाके साथ मेरा सबंध था । कर्म जोरे पांचमा काल में जनम लीया । विराग पिण आव्या । गुरु संजोग न मिल्या ते पाप का उदा । पुछा पुछी तथा शास्त्र 'जोतेको जिनधर्म की किंचित सोजी पडी । एह मोटे पुन्यका उदा दिसें हें ।
१ जमता नहीं है । २ देखने से । ३ समझ ।
मोहपत्ती चर्चा * २६