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________________ लग्या । व्यवहारे तो जीवको देव गुरु धर्म का निमीत्तहें ! निश्चे तो आपणा उपादान धर्म का निमीत्त हैं । ज्ञानावरणी तथा दर्शणावरणी कर्म वीवर देवे । तथा पुन्यानुबंधी पुन्य आवी मीले तो जीवको केवली परुपे धर्म की प्राप्ती होवें । अहो भव्य जीवो ! तुम संसार तरणे की चाह करते हो तो समकीती पुरुषा की सेवा करो मोक्ष मार्ग आराधो । इत्यादिक ग्रंथा की रचना देख के हमने बडा आश्चर्य पाया धन जिनशासन ! धन जिनशासनका ज्ञान । जौणसा मैने पूर्वे ज्ञान पढ्या था ते पिण आज सफल होइया । धन सुद्ध परुपक श्रमण संघ । तीसको मेरी त्रीकरण त्रीण जोग करी वंदना सदैव थावो । फेर मेंने आनंदघनजीकी चौवीसी तथा बहोतरी वांची । तथा देवचंदके ग्रंथ बनाय होये आगमसार अध्यात्मगीता तथा चौवीसी । श्रीधर्मदास गणीकी बणाइ होइ उपदेसमाला । तथा मेंने तो थोडेइ ग्रंथ वांचेछे मेरी तो अल्प बुद्धी छें । अने मिथ्यात्वी नव पुरव लगे पढे हे । तथा अभव्य जीव इग्यार अंग लगे कोइक पढे छे । तोपिण अतीत अनागत काल लीजीयें तो अनंत जीव पडे तथा आगे कों पडेंगे । तथा द्रव्यलिंगधारीने उत्कृष्टी क्रिया करी ने इकवीसमे देवलोक गया । अनंतीयां इंद्रीयां करीयां । परंतु गंथीभेद होइ नहीं । समकित जीवको थया नथी । द्रव्यज्ञान तथा द्रव्य क्रिया जीवको च्यार गती देणेवाली थइ । पण मोक्ष दाइक न थइ । समकितका अंग जागे तो मोक्ष मारग सूजेइ । तव ते पुरुष आपणी शक्ती मुजब मोक्ष मार्ग के पंथे चाले । ते उपर दृष्टांत कहे छे । जिम कोइ मनुष अपणे गामको चाल्या जावे था । बिचमे जातां जातां कर्म जोग दीसा मूढ होइ गया । परंतु अपणे गामका नाम जाणे छे । पिण जितना जितना कीसेने उसको रुडा मारग बताया तेता तेता तो उपकारी खरा । जेता भुंडा मारग बतावे तेता तो खरा नथी । तिम कोइ मोक्ष मार्ग बतावे तेता तो खरा तथा जेता जेता मत का मोह करके तथा ज्ञानावर्णी के उदे तथा दर्शनावर्णी के उदे तथा भोलपणें तथा हठवाद करके उनमारग बतावें तो खरा नथी । परंतु समकिती इम जाणे जौणसा सुद्ध मारग बतावे तेतो मोहपत्ती चर्चा * २४
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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