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________________ तव मेनें कह्या- इन्हाने तो गुण जाणके बंधी । पूर्वे तिर्थंकरां गणधरां आचार्या माहाराजोने एह वात में गुण न देख्या ।। तो उनसे एह चतुर होय । एह चतुराइ तो तुमारे को प्रमाण होयवेंगी । हमारे को तो जो सूत्रा में तिर्थंकरा गणधराने कह्या हे सो प्रमाण हे | फेर हमने कह्या- जो तिन लिंग शास्त्र में कहे हे एक स्वलिंग १ दूजा अन्न लिंग २ तीजा ग्रहलिंग ३ एह मुखबंधालिंग तथा मुखखुल्लालिंग दोनो प्रत्यक्ष जूदे २ लिंग हे । एह दोनो में स्वलिंग किसको सरदीए ? ते कहो । तब कहणे लगे चरचा जाण देवो । चरचा में राग द्वेष उठता हे । एसा कहण लगे । चरचा वारता बी पांच सात दिन होइ । फेर 'थोडी पड गइ । __फेर मेंने जमना पार बामनौली चौमासा करके चौमासे उठे पिछे में दिल्ली गया । एक महीना रही पंजाब देश में आया । रामनगर चौमासा कर्या । चौमासा करके फेर दिल्ली चौमासा आय कीया । दील्ली चौमासा करी फेर चौमासा उठे पिछे विहार करी पंजाब को गया । पंजाब देश में दादनखानदेपिंड में चौमासा करी चौमासा करके फेर प्रेमचंदने पाणीपत में चौमासा कीया । मेंने अरु मूलचंदने दील्ली चौमासा कीया । चौमासे पहिली रामनगर के दो भाइयाने हमारे पास दीक्षा लीधी बड़े वैरागसे धन कुटुंब छोडके हम चार साधाने दील्ली चौमासा कीया । चौमासा उठे प्रेमचंद बी आय गया । हमांने पांचो साधाने जैपुर चौमासा कीया । फेर बीकानेर चौमासा कीया । ___फेर सिद्धाचल तिर्थ की यात्रा करने को मन हुवा । अजमेर के संघ के साथ मिलके केसरीयानाथजी की यात्रा करी । फेर केसरीयानाथजी की यात्रा करण को गुजरात का संघ आया था । सो हम बी साथ मील के गुजरात देश को चले गये । श्री सिद्धाचलजी की यात्रा जाय करी । पीछे भावनगर में चौमासा जाय कीया । उहां के भाइयाने हमारे को सूत्रांका भंडार दिखाया । केतलेक ग्रंथ हमारे को दीया । जौणसे हमारे को चाही दे थे सो हमारे को दे दीने । १ ढंडी । - मोहपत्ती चर्चा * २०
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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