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________________ मुखपत्ती हाथ में रखणी । अरु एह वात उसके सर्वत्र परिवारने 'परिमाण कर लइ । तब पंजाब देसमें मुखबंधालिंग अन्नमतीका हे सो विशेष प्रगट होया । स्यालकोटते विहार करके में रामनगर मध्ये आया मूलचंद अरु प्रेमचंद बी रामनगर में थे हम तीनो साधु इकटे हो गये दो चार दिन रहेके कुजरावाले को विहार कीया । मूलचंद को कुजरावाले छोड के मैने अरु प्रेमचंदने पटीयाले की तर्फ विहार कीया । विचरते २ कोटले मध्ये गये । अरु हमारे भाव दिल्ली जाने के थे । सो हम कोटले ते विहार कीया । __ आगे पट्याले मध्ये अमरसिंघ के गुरु भाइने साठ तथा 'सत्तर वरत करे थे । उसने पटीयाले मध्ये 'वर्तानाल काल कीया था । उसके 'महोछे उपर घणे खेत्रांके भाइ तथा घणे बावीस टोल्याके साध तथा साध्वी घणे इकठे होए थे । ___ सो हम बी उहां आयगय । हमाने पटीयाले के विचो आहार पाणि लीधा । हम दोनोने विचारया-इहां तो घणे मती भेले होइ में हमारे कों इहां उपद्रव होवेगा । हमा- इहां रेहेणा योग्य नही । इहांते चालो । रस्ते में आहार करके कल्लको अंबाले चलांगे । तवं उनाने जाणा-तेतो इहांते चले गये । तव उनाने विचारया-अब तो खुब दाउ में आय थे । परंतु निकल गये । अब कैसे करीए ? लोकांको उनानें कह्या-तुम उनाको नरमाइ करके इहां मोडके ल्यावो । तब भाइ वीस पचीस हमारी गैल भागे । हमारे को आयके वंदणा नमस्कार करके बोले-स्वामीजी ! तुम खेत्र को छोड के किम उठ चले हो । आप सुखे चलके उतरो । इत्यादिक अनेक उत्तर पडुत्तर हुये । हमारे को पीछे मोडके लैगे । हमने जाण्या - इहां कुछ उपसर्ग होवेगा । परंतु जो होवेगा सो देख्या जावेगा । हम थानक में जाय उत्तरे । हमाने आहार पाणी कीया । अरु आहार पाणी करके हम दोनो बेठे थे । इतने मे आसरे बावीस टोल्या के १ प्रमाण-स्वीकार कर ली । २ सित्तेर । ३ व्रत-पच्चक्खान के साथ । ४ महोत्सव । ५ दाव में । ६ पीछे । मोहपत्ती चर्चा * १६
SR No.023016
Book TitleMuhpatti Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasenvijay, Kulchandrasuri, Nipunchandravijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages206
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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