________________
સ્તવનમાં ઢાળ-૭ ગાથા-૧ થી ૧૧નું વિવેચન સુગમ છે.
अशुद्ध ववहारको शुद्ध व्यवहार कहणेते मिथ्यात्व है । अरु अणलिंग को स्वलिंग तथा अन्य तीर्थ को प्रभु का तीर्थ सरदणा ए मोटी मिथ्यात्व है । आत्मार्थि को विचारणा जोग है । समकित रुपणी रुइ है अरु मिथ्यात्वरुपीया तीणगा है । ए ग्रंथ वांचके सूत्र जे ते नंदी तथा ठाणांग तथा व्यवहार तथा अंगचूलीए मध्ये जे ते सूत्र चले है ते सर्व प्रमाण करके सूत्रां विषे धर्म के देखी या नेरणा देवीनी परे संक्या पाडशे ते संका संसारबंधणनो कारण जाणी परहरजो । तथा पूर्वाचार्या के रच्या होय चूर्णी १ भाष्य २ नियुक्ति ३ टीका ४ परमप्राय जौणसी श्री सुधर्मास्वामीते लगाइके चली आइ है ।
तथा कोइक पूर्वाचार्याने सूत्रांका रहस्य लेइने कोइक मर्यादा बांधि है । ते प्रमाण करणी जोग हे । कीस वास्ते ? इस कालमें सूत्र संपूर्ण नहि रहे । आचारांग सूत्रका पाठ अठाराहजार पद हे । सर्व ठाम दूणे सूत्र हे । सर्व सूत्र अब रहे नहि । आचार्या को सूत्र विसर गया परंतु अर्थ याद रह्या । तिना अर्थांके प्रकरण बंधे है । तीना को न मानीये तो जिनसासन की सिद्धी नही होती । तीन कारण पूर्वाचार्यां के वचन प्रमाण करणे जोग्य है ।
तथा मतकदाग्रहीयाने और कीम खेद करणे के वास्ते जे रीत बांधि है ? ते रीत आत्मार्थि पुरुषांको विचारनी जोग्य है । जेकर कीसेने रागद्वेष करके सूत्र वीचो काढके साची समाचारी चलाइ है तीसको हीतकारी नहि । रागाउ दोसाउ दोकमवीया इति वचनात् । ते समाचारी बीजा कोइ सूत्रोक्त जाणीने रागद्वेष अज्ञान छोड के, भगवंत की समाचारि आदरे । आत्महित भणी थाय । परंतु ज्ञान बीना न जणाय । वीतराग की सेवाते सर्व पामीये स्वपरमतनो मर्म इति वचनात् ।
तथा भसम ग्रहके प्रभावते असंयतीआका अछेरा व्रत गया । केटलेक जीवानी मती विभरम होइ गइ । तिनोने अचल विचल वातां लिखी देइयाहे ते विचारवा जोग हे ।।
तथा कोइक इम कहे हे जो आपणी क्या बुद्धी हे ? जो खरा खोटा कहीये । जो वडया वडेराने लिखदिया तथा कर लिया ते खरा । उत्तर- ए बात तो सघला लोक कहे हे अरु विनेवंत कहलाते हे तिना को ता वीतरागने विने मिथ्यात कहया हे । तथा वीतरागे तो विनयधर्म
९० * मोहपत्ती चर्चा