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-नोशत रोटी खाते हुए धार्मिक और सदाचारी होने का दावा सुनकर हमें इसलिए आश्चर्य नहीं होता कि हममें एक असाधारण बात पायी जाती है, हमारे आंखें हैं लेकिन हम देख नहीं सकते, कान हैं लेकिन हम सुन नहीं सकते । आदमी बदबूदार से बदबूदार चोज, बुरी से बुरी आवाज और वदसूरत से बदसूरत वस्तु का आदी बन सकता है जिसके कारण वह आदमी उन चीजों से प्रभावित नहीं होता जिससे कि अन्य आदमी प्रभावित होजाते
. डा० किंग्स्फोर्ड और हेग ने मांस की खुराक से शरीर पर होने वाले बुरे असर को बहुत स्पष्ट रूप से बतलाया है। इन दोनों ने यह बात साबित करदी है कि दाल खाने से जो एसिड पैदा होता है वहीं एसिड मांस"खाने से पैदा होता हैं। मांस खाने से दांतों को हानि पहुँचती है, संधिवात होजाता है। यहीं तक नहीं, बल्कि इसके खाने से मनुष्यों में क्रोध उत्पन्न होता है। हमारी पारों। ग्यता की व्याख्या के अनुगर क्रोधी मनुष्य निरोगी नहीं गिना जाँ सकता । केवल मांस-भोजियों के भोजन पर विचार करने की जरूरत नहीं, उनकी दशा ऐसी अधम है कि उसका खयाल कर हम मांस खाना कभी पसन्द नहीं कर सकते। इत्यादि' ,
.. ........ . प्रासग्य साधन-महात्मा गांधी ) डा जोशिया भारुड फील्ड डी सी० एम० ए०, एम आर०.. सी०, एल० र सीपी, सीनियर फिजीसियन मारगैरेंट- . हास्पिटल ब्रामले, कहते हैं :