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बहुत दिनों तक बन्द रहती हैं, किन्तु निरामिषियों के बच्चे पैदा होते ही थोडी देर में आंख खोल देते हैं ।
मांसाहारी जानवरों को गर्मी भी सहन नहीं होती। वे थोड़े परिश्रम से थककर हार जाते हैं, लेकिन मनुष्य गर्मी बरदास्त कर सकता है, और थोड़े से काम से हार नहीं जाता ।
मांसाहारी जीवों के शरीर से अधिक परिश्रम और दौड़ धूप के बाद भी पसीना नहीं निकलता विपरीत इसके मनुष्य एवं निरामिषाहारी जीवों को अधिक कार्य करने पर पसीना आजाता है ।
पूर्वो विभिन्नताओं से अच्छी तरह समझ सकते हैं कि मांस खाने वाले और निरामिष भोजियों के शरीर की बनावट व स्वभाव में बड़ा अन्तर है। मनुष्य के शरीर की बनावट व स्वभाव मांसाहारी जानवरों से बिलकुल नहीं मिलते | मनुष्य में मांसाहारी जानवरों की तरह पाचनशक्ति भी नहीं कि वह मांसाहारियों की तरह कच्चे मांस को पचा सके, बल्कि उसको कई तरह के मसाले आदि से विकृत करके पचाने की कोशिश करते हैं ।
मनुष्य की खुराक में ऐसा कोई खाद्य पदार्थ नहीं जो बिना दादों के नीचे दबाये साबित निगला जाय, किन्तु मांसाहारी चबाते नहीं, साबत ही निगल जाते हैं, चाहे मनुष्य के संसर्ग से अन ग्वाने लगे पर उनके पास पीसने वाले दांत नहीं हैं, प्रकृति ने उनको पीसने वाले दांत दिये ही नहीं क्योंकि उनकी खुराक मांस
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( न पिसने वाली ) वस्तु है, परन्तु मनुष्य के दांत हर वस्तु को पीसने वाले होते हैं ।
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