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(६) "केनान्न रसानिति जिह्वयेति"
- "कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद्” पृ० १६७
अर्थात् - अन्न रसों को किस से चखे ? जिह्वा से । "अथ पौर्णमास्यां पुरस्ताच्चन्द्रमसं दृश्यमानमुपतिष्ठतैतयैवावृता सोमो राजासि विचक्षणः पञ्चमुखोऽसि प्रजापति ब्राह्मण स्त एक मुखं, तेन मुखेन राज्ञोऽत्सि तेन मुखेन मामन्नादं कुरु । श्येनस्त एकं मुखं तेन मुखेन पक्षिणोऽसि राजा त एकं मुखं तेन मुखेन विशोऽत्सि, तेनैव मुखेन मामन्नादं कुरु । श्येन स्त एकं मुखं तेन मुखेन पक्षिणोऽत्सि तेन मुखेन मामन्नादं कुरु । निस्त एकं मुखं तेन मुखेनेमं लोकमत्सि, तेन मुखेन मामन्नादं कुरु | सर्वाणि भूतानि इत्येव पञ्चमं मुखं तेन मुखेन सर्वाणि भूतान्यसि, तेन मुखेन मामन्नादं कुरु ।
- "कोषीतकि ब्राह्मणोपनिषद्” पृ० १६०
अत्- पूर्णमासी के शाम को सामने चन्द्रमा को देख कर खड़ा होकर इससे प्रार्थना करे, हे विचक्षण ! सोम! राजा तू है, पञ्चमुख प्रजापति है, तेरा एक मुख ब्राह्मण है, उस मुख से राजाओं को खाता है, उस मुख से अन्नाद ( अन्न खाने वाला ) कर | क्षत्रिय तेरा एक मुख है, उस मुख से मुझे अन्नाद कर । श्येन तेरा एक मुख है, उस मुख से पक्षियों को खाता है, उस मुख .से मुझे अन्नाद कर । अनि तेरा एक मुख है, उस मुख से इस लोकको खाता है, उस मुख से मुझे अन्नाद कर । सर्वभूत तेरा