________________
( ३६ ). उनमें से एक सर्व साधारण के लिए रक्खा, दो देवों को अर्पण किये, तीन अपने स्वाधीन किये, और एक पशुओं को दिया। जो भाग पशुओं को दिया उसमें प्राणवान् सभी तत्त्व विद्यमान थे। इस कारण से सर्वदा खाये जाने पर भी वे क्षीण नहीं होते, जो उस अक्षय को जानता है, वह अन्न खाता और प्रतीक रूप से वह देवताओं को भी प्रदान करता है । वह धान्य का स्वयं उप जीवन करता है।
"दशग्राम्याणि धान्यानि भवन्ति बीहियवा-स्तिलभाषा अणु प्रियंगवो गोधूमाश्च मसूराश्च खल्वाश्च खलकुलाश्च तान पिष्टान् दधनि घृत उपषिश्चत्यास्ये जुहोति”
' 'वृहदारण्योनिषद्” पृ० ११७ अर्थात्-दस ग्राम्य धान्य होते हैं, ब्रीहि, यव, तिल, माष, अरगु, प्रियङ्ग , गेहूँ, मसूर, खल्ब, खलकुत्र, इनको पीस कर ही दही मधु, घृत में मिलाकर अग्नि में आहुतियां देते हैं।
(४) पुरुष एवेदं सर्वं यद्भुतं यच्च भव्यम् । . उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ।।
"श्वेताश्वतरोप निषद्” पृ० १२३ अर्थात-जो पहले था, वर्तमान में हैं, भविष्य में होगा वह सब पुरुष ही है, जो अमृत का स्वामी है, और अन्न से बढता है।