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(४६६ ) . लिये माधुकरी वृत्ति से मिला लेने और भोजन का आसन्त्रण न स्वीकार का नियम बनाने का आग्रह किया होगा जिसकी कि बुद्ध ने स्वीकार नहीं किया।
बुद्ध कालीन भिक्षुओं में स्नान पान सम्बन्धी कड़े नियम नहीं थे, फिर भी भिक्षुओं का जीवन सरल : सादा और खान पान साधारण होता था । परन्तु ज्यों ज्यों समय बित्ता मया उनके खान पान की सादगी में भी परिवर्तन होता गया । बुद्ध के जीवन काल में जो पदार्थ भिक्षुओं के लिये अयोग्य माने जाते थे वे ही धीरे धीरे भिक्षु के जीवन की उपयोगी सामग्री मानी जाने लगी। विमान वत्थु में भिक्षुओं के देने योग्य अनेक वस्तुओं के दान की प्रशंसा की गई है, और उस प्रकार, के दान से देव विमान की
प्राप्ति होना बताया है । जो नीचे लिखे कतिपय उद्धरणों से ज्ञात -होगा
फाणितं,उच्छुखंडिकं, तिंबरूक, ककारिक, एलालुकं, वल्लीफलं फारूसकं, हत्थापतापकं, साकमुढ़ि, मूलक..। बिमुट्टि, अहं अदासि भिक्खुनो पिएडायरंतस्स""पे॥७॥
अंबकनिक, द्रोणि निमुज्जनं, कायबन्धनं, अंसवट्टक, अयोग पट्ट', विभूपन, तालबं;, मोरहत्थं, छत्त, उपानहं, पूष, मोदक, सक्खलि।
(विमान पत्थु पृ० ३०) प्रार्थनमामित (मन्त का परिवलस-राषा सक्कर की पूर्वापाकिसकाहाना बिकाल, कडी, चीभड़ा देन का