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( ४६५ ) 'सो बीज गाम भूत गाम समारम्भा पटि विरतो होति + ++I श्रमकधञ्ज पटिग्गहणा"। आमकमंस पटिगहणा...।
अर्थात्-"वह बीज ग्राम याने हरेक प्रकार के सजीव धान्यों का और अन्य वनस्पति श्रादि भूतग्रामों का समारम्भ करने से निवृत्त होता है। कच्चा हरा धनियां और कच्चा मांस लेने से प्रतिविरत होता है।" ___इससे प्रतीत होता है कि बौद्ध भिक्षु किसी प्रकार के धान्यों के बीज नहीं लेते थे। इसका तात्पर्य यह हुआ कि रन्धा हुआ अथवा सेका हुआ धान्य ही भिक्षा में ग्रहण करते होंगे । कच्चे मांस का प्रतिषेध करने से यह सिद्ध है कि वे पकाया हुआ मांस भिक्षा में लेते थे इसमें कोई शङ्का नहीं रहती।
धम्मपद में भिनु की भिक्षाचर्या को माधुकरी वृत्ति की उपमा दी गई है। वह नीचे की गाथा से स्पष्ट होता है___ यथापि भमरो पुष्पं वएणगन्धं अहेठयं । . फलेति रसमादाय एवं गामे मुनी चरे ॥६॥
अर्थ-जैसे भौंरा पुष्प के वर्ण तथा गन्ध को हानि नहीं पहुं चाता हुआ उसका मकरन्द रस लेकर अपना पोषण करता है, उसी तरह मुनि ग्राम में मधुकरी वृत्ति से भिक्षा ग्रहण करता है।। इत्यादि पद्यों से यह प्रतीत होता है कि बुद्ध के समय माधुकरी वृत्ति करने वाले भितु भी विद्यमान होंगे, परन्तु उनकी संख्या परिमित होनी चाहिए, और इसी कारण से देवदत्त ने सभी भिक्षुओं के