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भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश में सैकड़ों वर्षों तक बौद्ध भिक्षुओं का अड्डा बना रहा, पर मुस्लिम धर्म के भारत में प्रवेश करने के बाद वे अधिक नहीं टिक सके, कुछ भारत में और अधिकांश चीन तिबेट आदि देशों में चले गये और वहां के उपासक धीरे धीरे अन्य सम्प्रदायों में मिल गये । मुस्लिम राज्य होने के बाद वे सभी मुसलमान बन गये । हम पहले ही कह चुके हैं कि उत्तर भारत में बौद्ध संस्कृति बहुत निर्बल थी । पश्चिम दक्षिण भारत के प्रदेशों में भी उनका प्राबल्य नहीं था, और जो थे वे भी धीरे धीरे जैन तथा वैदिक धर्म के राजाओं द्वारा वहां से निर्वासित किये जारहे थे। ईशा की नवम शताब्दी के बाद की मूर्ति शिला लेख आदि कोई बौद्ध संस्कृति सूचक चीज गुजरात, सौराष्ट्र, राजस्थान आदि में दृष्टिगोचर नहीं होती। इससे जाना जाता है कि दशम शताब्दी के पहले ही बौद्ध भिक्षु पश्चिम तथा दक्षिण भारत को छोड़ कर चले गये होंगे ।
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ईशा की दशमी शताब्दी तक नालन्दा का विश्वविद्यालय स्तित्व में था । इसका अर्थ यही हो सकता है कि उस समय भी पूर्व भारत में हजारों बौद्ध भिक्षुओं का निवास होना चाहिए, इतना होने पर भी भारत से बौद्धों का निर्वासन बन्द नहीं पडा था । दक्षिण पूर्वीय भारत के देशों से बौद्ध बङ्गाल की तरफ खदेडे जा रहे थे। ईशा की बारहवीं शताब्दी तक वङ्गप्रदेश में बौद्ध धर्म टिका हुआ था, परन्तु उसके उपदेशक भिक्षुगण अनेक तान्त्रिक सम्प्रदायों में बट चुके थे। कोई अपने सम्प्रदाय को चन्द्रायन,