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( ४२१ ) खरीदना, खाना और बध बन्धनों द्वारा पशु को मारना ये तीन प्रकार के बध कहे गये हैं।
जो मनुष्य पहले मांस भक्षक होकर बाद में उसका त्याग कर लेता है वह भी धर्म का भागी बनता है क्योंकि जो पापमार्ग से निवृत्त होता है वह भी धर्मियों में ही परिगणित है।
जो मनुष्य मांस का त्यागी होता है वह राक्षसों पिशाचों डाकिनियों और भूत प्रेतों द्वारा कभी छला नहीं जाता। ।
खेचराश्चाव गच्छन्ति जीवितोऽस्य मृतस्य वा ॥१७॥ पृष्ठतो द्विज दिल यो मांसं परिवर्जयेत् । तथान्नैर्नाभिभूयेते यो मांसं परिवर्जयेत् ॥१८॥
अर्थ-हे ब्राह्मण श्रेष्ठ ! पिछले जीवन में भी जो मांस का परित्याग करता है । उसकी जीवितावस्था में और मरने के बाद में भी आकाश गामी देव विद्याधर खबर रखते हैं। और मांस त्यागी किसी भी क्षुद्र भूत-प्रेत द्वारा सताया नहीं जाता।
चिता धूमस्य गन्धेऽपि मृतस्यापि निशाचराः । क्रव्यादा विप्रणश्यन्ति यो मांसं परिवजयेत् ॥१६॥
अर्थ-जो मनुष्य मांस का त्यागी है उसके जीते जी तो क्या मरने के बाद भी उसके शव की चिता के धूम की गन्ध पाकर भी कवा मांस खाने वाले राक्षस तक दूर भागते है। .
शस्त्रामि-नृप-चौरेभ्यः सलिलाच तथा विषात् । भयं न विद्यते तस्य तथान्यदपि किञ्चन ॥२०॥