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( ४१५ ) पंचमाध्याय का परिशिष्टांश
वैदिक परिव्राजक वैदिक परिव्राजक का जीवन परिचय जो ऊपर दिया गया है उसमें वेद, उपनिषद्, धर्म सूत्र आदि का ही आधार लिया गया है। इसके अतिरिक्त वैदिक धर्म के प्रतिपादक पुराण ग्रन्थ भी ध्यान में लेने योग्य हैं । वैष्णव-मात्स्य वायव्य ब्रह्माण्ड आदि महापुराण भी बहुप प्राचीन ग्रन्थ हैं। इन सभी में अहिंसा, धर्म, दान, सदाचार, देवतार्चन, तपश्चरण और इन धर्मों का आराधन करने वालों का विपुल इतिहास है।
विष्णु धर्मोत्तर नायक महापुराण वैष्णव महापुराण का ही उत्तर भाग है। इसमें मांस मदिरा भक्षण निवेधा और अहिंसा धर्म का प्रतिपादन किस प्रकार से किया गया है इसका दिग्दर्शन इस परिशिष्ट में करना हमारा उद्देश्य है । आशा है हमारे पाठकगण इस परिशिष्ट को "वैदिक परिव्राजक" अध्याय का ही एक भाग समझकर ध्यान से पढ़ेंगे। श्री शंकर परशुराम को कहते हैं
अहिंसा सत्य वचनं दया भूतेष्वनुग्रहः । यस्यैतानि सदा राम ! तस्य तुष्यति केशवः ॥१॥ माता पित गुरूणां च यः सम्यगिह वतते। वर्जको मधु मांसस्य तस्य तुष्यति केशवः ॥२॥ वाराह-मत्स्य-मांसानि यो नाति भृगुनन्दन । विरतो मद्यपानाक, तस्य तुष्यति केशवः ॥३॥