________________
( ३६० ) भिक्षाटन काल भिक्षाग्रहण योग्य कुल
भिक्षु को किस समय भिक्षाटन करना चाहिये इस विषय में करव कहते हैं।
विधूमे सनमुशले, व्यङ्गारे भुक्तवज्जने । कालेऽपराहे भूयिष्ठ, भिक्षाटनमथाचरेत् ॥
अर्थः-बस्ती में धूआँ निकलना बन्द हो जाय, मुशल खडा कर दिया जाय, अङ्गार निस्तेज हो जाय, लोक भोजन कर चुके और अपराह्न समय लगने पर भिन्न भिक्षाचर्या को निकले । - मनुजी कहते हैं यति एक बार ही भिक्षाटन करे। एककालं चरेद् भैर, न प्रसज्येत विस्तरे । भैरे प्रसक्तो हि, यतिविषयेष्वपि सज्जति ॥ अर्थः-यति एक बार ही भिक्षा भ्रमण करे अधिक नहीं, जो भिक्षा के विस्तार में लगता है वह कालान्तर में विषयासक्ति में भी फंस जाता है। ___इस विषय में वसिष्ठ स्मृतिकार का कथन यह है
"ब्राह्मणकुने वा यल्लभेत् नद् भुञ्जीत सायं मधुमांससर्पिः परिवर्जम्"
अर्थः-ब्राह्मण कुल में जो मिले उसीका भोजन करले, मधु, मांस, घृत को भोजन में कदापि ग्रहण न करे। __ यद्यपि उपर्युक्त उल्लेख में ब्राह्मण कुल का निर्देश किया गया है तथापि अति के "चतुर्यु वर्णेषु भैक्षचर्य चरेत्" इस