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( ३८३ ) मीमांसक दर्शनानुयायी और नारायण को अपना इष्ट देव मानने वाले हैं। इनका जाप मन्त्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" यह है । इनको नमस्कार करने वाले "नमो नारायणाय" यह बोलते हुए नमस्कार करते है । उसके प्रत्युत्तर में ये "नारायणाय नमः" यह पद बोल कर उसका स्वीकार करते हैं । इन नारायण भक्तों में त्रिदण्डी और एक दण्डी दोनों प्रकार के सन्यासी होते हैं।
शैव संन्यासी
मीमांसक दर्शनानुयायी संन्यासी जैसे नारायण के भक्त हैं, वैसे ही योग, वैशेषिक, आक्षपादिक, दर्शनों के अनुयायी संन्यासी शिव को अपना आराध्य देव मानते हैं,
और “ॐ नमः शिवाय" इस षडक्षर मन्त्र का जाप करते . हैं। ये कोपीन लगाते है कई नंगे भी रहते हैं।
___ इस प्रकार दर्शन विभाग के अनुसार संन्यासियों का द्वौ विध्य होता है, और त्रिदण्डी एक दण्डी के भेद से भी वे दो प्रकार के होते हैं।
दर्शन के लिहाज से सांख्य दर्शन के अनुयायी संन्यासियों का एक तीसरा विभाग है, जो सब से प्राचीन माना जाता है। सांख्य संन्यासी पचीस तत्वों का मानने वाले हैं। अतिपूर्व काल में ये वेदों को और ईश्वर को नहीं मानते थे। इसी कारण से