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( ३८१ ) . त्रिदण्डियों का स्नान त्रिषवण कहा है, और नियम भी त्रिदण्डियों के पालनीय है, सर्व इच्छाओं से निवृत्त प्रात्मदर्शी परमहंसों के लिए स्नान नियमादि कोई कर्तव्य नहीं। . .
मौन रहना, योगासन करना, योगाभ्यास, सहनशीलता, एकान्त प्रियता, निस्पृहत्व और समभाव ये सप्त एकदण्डी संन्यासी के कर्तव्य है। ___ जैनाचार्य श्री राजशेखर सूरि रचित "षड्दर्शन समुचय" में मीमांसक दर्शन की चर्चा करते हुए आचार्य ने उपयुक्त संन्यासियों का वर्णन किया है। उसमें कुछ विशेषता होने के कारण यहाँ उद्धृत करते हैं
मीमासकानां चत्वारो, मेदास्तेषु कुटीचरः । बहूदकश्च हंसश्च, तथा परमहंसकः ॥ . कुटीचरो मठावासी, यजमानपरिग्रही । - बहूदको नदीतीरें, स्नातो नैरस्य भैच्यभुक ॥ हंसो भ्रमति देशेषु, तपः शोषित विग्रहः । यः स्यत् परमहंसस्तु, तस्याचारं वदाम्यहम् ॥ स ईशानी दिशं गच्छन्, यत्र निष्ठितशक्तिकः ।
तत्रानशनमादत्त, वेदान्तध्यान तत्परः॥ अर्थः-मीमांसा दर्शन को मानने वाले सन्न्यासी चार प्रकार के होते हैं कुटीचर (क), बहूदक, हंस और परमहंस । .