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________________ (( ३५६६ )) पर हमसे दो छकानसशारक प्रवैरत कृतियों के विरुण देवही यह दिखाया है कि ब्राह्मण किस प्रकार निरर्थक हत्याकार्यों के लिये दण्डविधान करके मिलने कोशिश करते थे अस्तिक हो, जिसे वो मायामाही पत्र माना जाता था, परन्त शामिल करने को हिंसा से रखने के लिये ब्राह्मणों ने हिंसा कायों के लिये आर्थिक दण्ड बानियत करवा दिया था जिसके अनुसार निष्कारण प्राणिहिसा करने वाती कोकार्मिक दरडीदकर शिकाने मलेशिजकमजन प्राणियों की महिमा करालवालोको मालमारितोषिकती व उन्हीं मोशियों की हिंसाकरमानों को सय किरा लगिन आधिकारिता की इतमाही नसारिकाका देशाभिमहत्या करने वालों के हिंसक अङ्ग पाक तक कटवा दिये जाते थे। इस प्रकार कड़ी शिक्षाओं और कठोर प्रायश्चित्तों के कारण से ही भारत को अधिक हिंसक रहा है, और भारत वर्ष आर्यक्षेत्र कालो दालाना सानाचीBR TIHD समय विशेष साधुसंभ बासीबाद के ग्रंथ निर्माता मामलासम्धमान लिन के पारशाम से पिछले ग्रामी अमुकासमवसका एक प्रक्षित पशु का वध करने और सबिलिशिकामासानाध्य होना पड़ा। समयावशेकाप्रवृशिमात्र सिमानाजातिमात्र को पशुघातक और मामास भाकहसांगनतीसाधनचत है। ब्राह्मय काममुक्त होकासि भागमा समसाममि, इस
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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