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अर्थः- हे पुत्र जाति कल्याण का कारण नहीं है, किन्तु गुण ही कल्याण के कारण होते हैं, सदाचारी और ब्राह्मण के व्रत में रहे हुए चाण्डाल को भी देव ब्राह्मण मानते हैं ।
क्षत्रिय जाति बाहुबली और शस्त्रधारी होने के कारण बहुधा मृगेया, मांस भक्षण और सुरा-पान के व्यसनों में अग्रसर हो रही थी, उस समय में विद्वान् ब्राह्मणों ने उसे बचाने के ि यज्ञ यागादि प्रवृत्तियों में डाल कर उसे पतन से बचाया । ब्राह्मण जाति न होती तो हमारा सत्रिय वर्ण आज अनार्य मांस भक्षी और जंगली लोगों से भी निम्नकोटि में पहुँच गया होता, परन्तु ब्राह्मण जाति की बदौलत आज के हमारे क्षत्रिय लोग आर्य बने हुए हैं, और अपने को वैदिक धर्म का अनुयायी होने का गौरव रखते हैं । यही कारण है कि प्राचीन ग्रन्थकारों ने राजा के पास पुरोहित होना अनिवार्य माना है ।
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17.
ऐतरेय ब्राह्मणकार लिखते हैं:
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न हिवाsपुरोहितस्य राज्ञो देवा अन्नमदन्ति, तस्माद्राजा यक्ष्यमाणो ब्राह्मणं पुरादधीत + + + +। ० ० ० ० यस्यैवं विद्वान् ब्राह्मणो राष्ट्रगोपः पुरोहितस्तस्मै विशः संजानते, सम्मुखाः एक मनसो यस्यैवं विद्वान् ब्राह्मण पुरोहितः ||२५||
अ० पं० अ० ५.
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अर्थ:- जिसके पास पुरोहित नहीं है, उसका अन्न देव नहीं खाते, इस वास्ते यश करता हुआ राजा पुरोहित को अमसर करे ।