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-- ( ' ३५२ ) ., ब्रह्मतत्व को न जानते हुए भी यज्ञोपवीत से गति बनाना ब्राह्मण अमन इसी कार से पशु-कहलाता है।
बासी, कूपा तालाब बारामस्थ सरोकर इन स्थानों में जाने वालों को निश्शाङ्क होकर रोकने वाला ब्राह्मण म्लेच्छ, ब्राह्मण कहलाता है।
क्रिया विहीन, मुख सर्वधर्मों से वर्जित और सर्व जीवों पर निई य ब्राह्मण चाण्डाल ब्राह्मण कहलाता है। - ____ उपयुक्त वर्णनानुसार ब्राह्मण अपने कर्तव्यों के अनुसार ही भले बुरे कहलाते थे, न कि ब्राह्मण जाति में जन्म लेने से ही सब उत्तम माने जाते थे । ब्राह्मणों का यह वाक्य तो सर्व प्रसिद्ध हैं कि-"जन्मना जायते शूद्रः" अर्थात् ब्राह्मण के कुल में जन्म लेने वाला भी तब तक शूद्र ही होता है, जब तक कि उसका संस्कार नहीं होता। इन सब बातों का सारांश इतना ही है कि पूर्वकाल में प्राह्मण उनके शुम कर्तव्य कर्मों से ही पूज्य माने जाते थे, न कि जाति मात्र से । इसके विपरीत अन्य जातीय संस्कारी मनुष्य भी ब्राह्मण के कर्तव्य कर्म करता और ब्राह्मण वृत्ति रखता तो वह भी कालान्तर में ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो सकता है। इस विषय में व्यास का निनोक्त वचन ध्यान में रखने योग्य है।
व्यास जी कहते है:- मयाति: "कारखं सात गुणान्यापासम् । .
वृत्तस्थमपि चाण्डालं, तं देवा ब्राह्मणं विदुः ।।